पहले आओ, पहले पाओ' की आड़ में डाका

DBT योजना का खुला उल्लंघन है,
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'पहले आओ, पहले पाओ' की आड़ में उत्तराखंड के कृषि-उद्यान विभाग में 'डाका'।

किसान सड़कों पर उतर गए तो फिर साम्राज्य को हिलने में देर नहीं लगेगी।

उत्तराखंड के कृषि एवं उद्यान विभाग में लाभार्थी चयन प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। कागज़ों पर भले ही योजनाओं का लाभ "पहले आओ, पहले पाओ" (First Come, First Served) और वरिष्ठता क्रम से देने की बात कही जाती हो, जिसके लिए किसान बाकायदा उद्यान कार्ड, आधार कार्ड, खतौनी और आवेदन पत्र जमा करते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। किसानों का सीधा आरोप है कि विभागीय निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाकर, योजनाओं का लाभ चुनिंदा किसानों तक ही सीमित रखा जा रहा है।

 भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप: 'ब्लैंक चेक' से अनुदान पर डाका


किसानों का दावा है कि लाभार्थी चयन में कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती। योजनाओं का लाभ लेने के लिए किसानों को विभाग और कार्यदाई फर्मों (दलालों) को पहले ब्लैंक चेक देने के लिए मजबूर किया जाता है। इसका उद्देश्य यह बताया जाता है कि अनुदान की राशि DBT (प्रत्यक्ष लाभ अंतरण) के माध्यम से किसानों के खाते में डालकर, बाद में चेक के जरिए वह राशि वापस निकाली जा सके। यह न केवल केंद्र सरकार की DBT योजना का खुला उल्लंघन है, बल्कि भ्रष्टाचार की आड़ में सरकारी धन पर 'डाका' डालने जैसा है।



ताज़ा घटनाक्रम में, उद्यान विभाग द्वारा इस वर्ष शीतकालीन फल पौध हेतु किसानों से आधी कीमत पहले ही जमा करवाई जा रही है। आरोप है कि विभाग अपने कमीशन के फेर में मनचाही नर्सरियों से पौध क्रय कर किसानों को देगा और फिर अनुदान की धनराशि किसानों के खाते में डालेगा।

 मिशन एप्पल और कीवी: सब्सिडी न मिलने पर किसानों का आक्रोश

विभाग में व्याप्त अनियमितताओं का ताजा उदाहरण एप्पल मिशन और कीवी मिशन योजनाओं में देखने को मिला है। पर्वतीय कृषक बागवान उद्यम संगठन के नेतृत्व में, वर्ष 2021 से लंबित सब्सिडी (अनुदान) न मिलने से परेशान किसानों ने 27 अक्टूबर 2025 को देहरादून में कृषि मंत्री के आवास का घेराव करते हुए 'न्याय यात्रा' निकाली। किसानों का आरोप है कि पिछले चार वर्षों से उन्हें करोड़ों रुपये की सब्सिडी का भुगतान नहीं किया गया है, जिसके चलते उनका बागवानी कार्य ठप पड़ गया है। यह आंदोलन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि किसान अब अपने हितों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।

 जनहित से जुड़े सवाल

  • क्या यह व्यापक भ्रष्टाचार उत्तराखण्ड निर्माण का सपना देखने वाले शहीदों का अपमान नहीं है?

  • जब विधानसभा में 15% कमीशन की बात उठी थी, तो सत्तापक्ष या विपक्ष ने इसका प्रतिकार क्यों नहीं किया?

  • भ्रष्टाचार की बढ़ती जड़ों को देखते हुए, क्या प्रत्येक वर्ष विभागीय अधिकारियों की संपत्ति सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए?

इन सवालों के बीच, किसानों और आम जनता की मांग है कि योजनाओं में बने रोडमैप के अनुसार ही कार्य किया जाए, तभी सही मायने में विकास ज़मीन पर दिखेगा और राज्य में दशकों से चली आ रही लूट पर लगाम लग सकेगी।


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