बिहार चुनाव परिणाम: 'तीर-तुक्के' नहीं, 'गणितीय आकलन' ने पहले ही बता दिया था परिणाम!
पटना/देहरादून: बिहार की राजनीति में वर्तमान में जो चुनावी परिणाम सामने हैं, वे किसी संयोग या 'तीर-तुक्के' का परिणाम नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसे ठोस गणितीय आकलन का नतीजा है, जिसकी भविष्यवाणी चुनाव की घोषणा से बहुत पहले ही कर दी गई थी। यह दावा एक राजनीतिक विश्लेषक की ओर से किया गया है, जो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि राजनीतिक परिस्थितियों का हमेशा गणितीय आकलन ही होता है और गणित कभी झूठ नहीं बोलता।
चुनाव से पहले ही दिख गया था 'जमीनी कारण'
यह खुलासा उस समय का है, जब न तो बिहार विधानसभा चुनाव की कोई आधिकारिक घोषणा हुई थी, और न ही किसी को यह पता था कि मतदान कब होंगे।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस समय तक न तो वृद्धों की पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1100 की थी, और न ही ₹10,000 की किसी आर्थिक सहायता योजना की कोई घोषणा की थी। घोषणा तो दूर, ऐसी किसी योजना का दूर-दूर तक कोई जिक्र भी नहीं था। लेकिन, इन सबके बावजूद, आज जो परिणाम बिहार में दिख रहा है, उसका ठोस जमीनी कारण उसी समय बता दिया गया था।
यह आकलन किसी हवाई लफ्फाजी के तहत नहीं किया गया था, बल्कि यह एक तार्किक और गणितीय आधार पर टिका हुआ था, जिसके चलते आज के नतीजे सटीक बैठते दिखाई दे रहे हैं।
2015 और 2024 के उदाहरण
गणितीय आकलन की यह पद्धति पहले भी सही साबित हुई है:
2015 बिहार विधानसभा चुनाव: पूर्व में किए गए आकलन में NDA की शर्मनाक पराजय का पूर्वानुमान लगाया गया था, और इसका कारण भी गणितीय ही बताया गया था।
2024 उत्तराखंड विधानसभा उपचुनाव: हाल ही में हुए इस उपचुनाव के नतीजे न केवल सटीक बताए गए थे, बल्कि वोट का अंतर तक भी लगभग सटीक भविष्यवाणी की गई थी।
इस आधार पर, दावा है कि राजनीतिक परिणामों की भविष्यवाणी करना संभव है, क्योंकि यह केवल राजनीतिक परिस्थितियों का नहीं, बल्कि एक गणितीय समीकरण का खेल है।
2024 लोकसभा चुनाव में असफलता और बिहार कनेक्शन
हालांकि, इस सटीक भविष्यवाणियों के बीच, हिमालय की आवाज ने 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के आकलन में अपनी बुरी तरह असफलता को भी स्वीकार किया है।
लेकिन, उनका कहना है कि इस असफलता का सटीक कारण अब पता चल गया है, और वह कारण बिहार विधानसभा चुनाव के वर्तमान परिणाम में ही छिपा हुआ है। इसका तात्पर्य यह है कि बिहार की राजनीतिक हवा में कुछ ऐसे अदृश्य गणितीय कारक थे, जिनका प्रभाव लोकसभा चुनाव के आकलन को भी प्रभावित कर गया।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, जो पारंपरिक राजनीतिक विश्लेषणों से हटकर संख्याओं और आंकड़ों के आधार पर परिणामों को समझने की बात करता है। अब देखना यह है कि यह 'गणितीय राजनीति' का सिद्धांत आगे आने वाले चुनावों में कितना खरा उतरता है।


