देहरादून में 'एप्पल मिशन' के पीड़ित किसानों का हल्ला बोल

केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी 'एप्पल मिशन' के तहत 80 प्रतिशत सब्सिडी,
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 सरकारी छलावे से टूटी पहाड़ों की आस: देहरादून में 'एप्पल मिशन' के पीड़ित किसानों का हल्ला बोल।

देहरादून। उत्तराखंड के पलायन-पीड़ित पर्वतीय क्षेत्रों में हरियाली और खुशहाली का सपना देख रहे सैकड़ों किसानों की उम्मीदें आज सरकारी फाइलों में दफ़न होकर रह गई हैं। केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी 'एप्पल मिशन' के तहत 80 प्रतिशत सब्सिडी का सब्जबाग दिखाकर जिन 545 किसानों ने अपनी ज़मीन पर बागवानी की शुरुआत की थी, वे अब पांच साल से अटके करीब 42 करोड़ रुपये के भुगतान के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर हैं।

दबाव में खुली सरकार की नींद

किसानों के बढ़ते आक्रोश और प्रदर्शन की तैयारी के बाद ही शासन में हलचल शुरू हुई। संगठन के संरक्षक राजेंद्र प्रसाद कुकसाल ने कहा कि जब पत्राचार से बात नहीं बनी, तो संगठन को सड़कों पर उतरना पड़ा। कल तक चुप्पी साधे बैठी सरकार को किसान एकता के आगे झुकना पड़ा।

देहरादून में प्रदर्शन की खबर आते ही, उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने अधिकारियों के साथ बैठक कर नौगांव, उत्तरकाशी और चकराता में तत्काल भौतिक सत्यापन शुरू करने के निर्देश दिए। वहीं, मुख्य सचिव ने भी 27 अक्टूबर से ही भौतिक सत्यापन सुनिश्चित करने को कहा।


धैर्य का बांध टूटा: सड़कों पर उतरे किसान


पर्वतीय कृषक बागवान उद्यम संगठन के बैनर तले किसानों ने आज (27 अक्टूबर) देहरादून में जोरदार प्रदर्शन कर सरकारी उदासीनता के खिलाफ अपना आक्रोश व्यक्त किया। किसानों का आरोप है कि 2021 से लेकर अब तक, जब तक वे कर्ज के बोझ तले दबकर पलायन को मजबूर नहीं हो गए, तब तक मंत्री और शासन ने उनकी सुध नहीं ली। संगठन के प्रदर्शन की खबर ने ही मानो सरकार की नींद तोड़ दी है, जिसके बाद आनन-फानन में मुख्य सचिव और कृषि मंत्री ने भौतिक सत्यापन और भुगतान के निर्देश जारी किए हैं।


80% सब्सिडी का सपना: ज़मीन खा गई या आसमान?

दरअसल, केंद्र के राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत उत्तराखंड में 'एप्पल मिशन' शुरू किया गया था। किसानों को कुल 80% (70% केंद्रीय + 10% राज्य) सब्सिडी का भरोसा दिया गया। इस वादे पर 545 किसानों ने अपनी जमा-पूंजी और बैंक कर्ज लगाकर सेब के बगीचे तैयार किए। लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी न तो 42 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिली, और न ही कुछ मामलों में उनकी अपनी 20% पूंजी विभागीय प्रक्रियाओं से बाहर निकल पाई। बागों के रखरखाव का खर्च निकालना अब असंभव हो गया है।

सीबीआई जांच की ढाल, अन्नदाता पर वार

जब भी किसान अपने हक़ की मांग करते हैं, उन्हें कृषि एवं बागवानी विभाग में चल रही सीबीआई जांच का हवाला देकर टाल दिया जाता है। इस पर किसानों का सीधा तर्क है कि सीबीआई जांच विभागीय अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर है, न कि योजना के लाभार्थी किसानों पर। अधिकारियों की गलती का खामियाजा अन्नदाता क्यों भुगते?

पलायन के दर्द पर सरकारी नमक

उत्तराखंड के खाली होते गांवों और पलायन के गहरे दर्द के बीच, कुछ किसानों ने अपनी जन्मभूमि पर रहकर बागवानी का साहस दिखाया था। जौनपुर के कपिल नौटियाल जैसे कई युवा कोविड लॉकडाउन के बाद गांव लौटकर इसी उम्मीद के साथ इस मिशन से जुड़े थे, लेकिन सरकारी लापरवाही ने उन्हें फिर से पलायन की ओर धकेल दिया है। नौटियाल कहते हैं, "योजना में कमी नहीं थी, कमी थी उसे ईमानदारी से लागू करने की नीयत में।"

किसानों का कहना है कि यह तत्परता उनकी मेहनत और आंदोलन की धमकी का नतीजा है। अगर किसान एकजुट नहीं होते, तो शायद यह सब्सिडी और सत्यापन का मामला सरकारी फाइलों में यूँ ही धूल फांकता रहता। पर्वतीय कृषक बागवान उद्यम संगठन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही लंबित भुगतान जारी नहीं किया गया, तो प्रदेशव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा।

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