त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव- घोषणापत्र के बगैर मैदान में

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 में क्या है मतदाताओं की मंशा,
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 क्या इतने हल्के में ले रहे चुनाव जहां कोई घोषणा पत्र ही नही।

घर घर जाकर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील पर प्रत्याशियों के विजन ही स्पष्ट नही।

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 का प्रचार अपने चरम पर है और कल 22 जुलाई को प्रथम चरण के मतदान वाले क्षेत्रों में चुनाव प्रचार का शोरगुल सायं 5:00 बजे थम जाएगा और फिर प्रत्याशियों के साथ साथ समर्थक अपने क्षेत्रों के वोटरों पर अपना गणित भिड़ाना शुरू कर देंगे एक एक बूथ मजबूत दिखेगा समर्थकों की नजरों से पर हकीकत में कुछ और ही परिणाम निकलेगा इसबार के चुनाव में।

इस समय मतदाता असमंजस में बिल्कुल नही है पर प्रत्याशियों को असमंजस में रखने में कोई कमी नही छोड़ रखी। अमूमन देखने को मिलता है कि पार्टियों द्वारा अधिकृत प्रत्याशियों के साथ मतदाता अपनी विचारधारा की पार्टी के साथ जाता है पर इस त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कैडर वोट बैंक किसी पार्टी का खिसक रहा तो किसी का बढ़ रहा।

प्रधान पद पर उम्मीदवार अमूमन गावों में बैठक होकर ही चयनित किये जाते हैं। इसबार कुछ गावों में देखने को मिला कि गावँ में प्रत्याशी को निर्विरोध घोषित हुए पर नामांकन पत्र दूसरा प्रत्याशी भी ले आया यह लोकतंत्र है सब सम्भव है।

प्रधान पद के प्रत्याशी मतदाताओं से अपने पक्ष में मतदान की अपील कर रहे पर विजन क्या है स्पष्ट नही। इसका कारण स्पष्ट है कि राजनीति क्या है यह उत्तरप्रदेश के मतदाताओं की समझ से सीखना चाहिए जिसे हर नेता ने कब क्या किया कब क्या बोला और क्या होना था का ज्ञान लगभग हर किसी को राजनीति का ज्ञान होने  के चलते उनसे सीखने की चेष्टा करनी चाहिए। यह अनिवार्य भी है और मजबूत लोकतन्त्र के लिए आवश्यक भी।

अधिकतर देखने में यह आ रहा कि प्रत्याशियों की समझ और योग्यता को नजरअंदाज करके अपने नजदीक का कौन है पर ही  अधिकतर मतदाताओं की नजरें टिकी हुई हैं अब यह देखना है कि इसबार कैडर वोट बैंक कितना कम ज्यादा होता क्योंकि ग्रामीण मतदाताओं तक कैडर वोटबैंक की बात हो रही है जो परिणामों को पलट सकते।

क्षेत्र पंचायत जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी चुनाव होना है पर प्रत्याशी घोषणापत्र जारी करने की जहमत नही उठा रहे इसका कारण दो हो सकते या तो प्रत्याशी ही घोषणापत्र से अनभिज्ञ है या मतदाताओं को ऐसे ही टरका दिया जाएगा यही देखने को मिल रहा पर कोई सवाल जबाब भी प्रत्याशियों से मतदाताओं के द्वारा न किया जाना क्या विकास को अनदेखा करना नही है। जिला पंचायत में लगभग यही परिपाटी चली आ रही है।

हम विकास की बात करते इसलिए ही आज भी पहाड़ों की समस्याएं पहाड़ों जैसे हैं क्योंकि  प्रत्याशियों का चयन सिर्फ भावनाओं में करते हैं। विकास की सोच को लेकर सवाल हो तो प्रत्याशी भी कुछ तैयारी करके आये मैदान में। पहाड़ की समस्याओं का निराकरण न होना पलायन की वजह बन रहा मूलभूत संसाधनो के विकास का रोडमैप कैसे बनेगा उतना वक्त ओर समझ होती तो आज प्राकृतिक रुप से समृद्ध पहाड़ अपनी नैसर्गिक छटा के साथ खुशहाल होते न कि बंजर होते खेत ओर वीरान होते मकानों की चौखटों में लटके ताले।

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