रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
राजनिति की भेंट चढ़ चुकी- जखोली मे निर्मित एशिया की पहले नबंर की लस्तर नहर।
जगह-जगह उगा है लम्बा- लम्बा घास, खण्डर बन चुकी है नहर।
नहर को लेकर जिला प्रशासन बैठा है मौन, अब कागज़ मे ही दफन होकर न रह जाए यह नहर।
जखोली- सरकार पहाड़ वासियों को मूलभूत सुविधा देने का दावा हमेशा हमेशा ही खोखला साबित होता है। एक तरफ पहाड़ से सुविधाओं के अभाव से पलायन होकर विरान होते हुए पहाड़ मुँह चिढ़ाते नजर आ रहे दूसरी तरफ के अधिकांशः परिवार जो किसी कारणवश अभीतक पहाड़ में थे वह चकाचौंध भरी जिन्दगी जीने की पलायन कर चुके हैं या कर रहें हैं। कुछ लोग मजबूरी में तो कुछ अपने जीवनस्तर में सुधार आने पर पलायन कर रहे। पलायन सतत प्रकिया है जो विकास के लिए आवश्यक है पर पूर्ण रूप से पलायन करना कहीं कहीं मूलभूत आवश्यकताओं पूर्ति न होना उसके संसाधनों के न होने से होता है।
वही दूसरी तरफ जंगली जानवरों का आंतक इस कदर हो गया है कि जो लोग वास्तविक रूप से काश्तकारी करना भी चाहते हैं तो जंगली जानवर खेतो को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। अगर काश्तकार किसी तरह हिम्मत दिखाखर नगदी फसल उत्पादन करता भी है तो उन्हें सिंचाई की सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि विकासखंड जखोली के अन्तर्गत क्षेत्र के काश्तकारों के लिए खेतो मे सिंचाई की सुविधा देने हेतू बर्ष 1977-78 मे तत्कालीन विधायक कॉमरेड विद्यासागर नौटियाल के द्वारा पट्टी बागंर से और लस्या पट्टी के बजीरा तक 29 किलोमीटर लस्तर नहर का निर्माण करवाया गया था। लस्या पट्टी, बांगर व सिलगढ़ पट्टी की भूमि को सिंचित करने के लिए ये एतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसला लिया गया था ।
इस नहर से जखोली के लगभग तीन दर्जन से अधिक गांवो के काश्तकारों को अपनी भूमि सिंचित करने मे सुविधा मिलनी थी, लेकिन आज आलम ये है कि यह नहर आज बिना मरोम्मत के सालो से खण्डर और वीरान पड़ी है।
आज हालात ये है कि नहर मे लगभग दो मीटर लम्बी घास जमी हुई है। करोड़ो रू की लागत से बनायी गयी ये नहर राजनिति की भेंट चढ़ चुकी है। वही इस नहर के प्रति जिला प्रशासन की कोई दिलचस्पी नही दिखी, लाखो रुपए लस्तर नहर पर मरोम्मत के लिए आये कहने वाले नेता आखिर कहाँ भूमिगत हो गये, जनता आज भी कब नहर की मरोम्मत हो और नहर मे पानी चले इतंजार कर रहे हैं।
एशिया की सबसे लम्बी नहर जो कि अपने आप मे एक प्रसिद्ध थी आज वो नहर राजनिति की भेंट चढ़ चुकी है। जबकि बर्ष 2012-13 मे इस नहर का 1.8 किलोमीटर तक यानी बजीरा गांव तक विस्तारीकरण भी किया गया जिसकी लम्बाई बढ़कर अब 30.8 किमी हो गयी थी, लेकिन आज ये नहर खण्डर हो चुकी है।
आपकी जानकारी के लिए ये भी बता दे कि सिंचाई विभाग ने अपने कमीशन के चक्कर मे जखोली मे कुछ सिंचाई, नहर ऐसी बनायी है जहां कोई सिंचित भूमि नही है, खेत बंजर पड़े है।
एक तरफ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी का सपना समृद्ध पहाड़ स्वरोजगार के साथ है और खेती बागवानी के साथ पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई तरह से युवाओं और महिलाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है पर बिना सिंचाई के क्या यह सम्भव है।