दशरथ कैकयी संवाद- राम को चौदह वर्ष का वनवास।
ग्राम कोठियाड़ा मैं 14वें वर्ष पूर्ण हो रही रामलीला।
भाग्य से बढ़कर कुछ कुछ नही बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख वाली उक्तियाँ दशरथ ओर कैकयी संवाद में देखने को मिलती हैं। कालचक्र कब क्या कर दे इस कालचक्र से भगवान राम भी नही छूट पाए। राम के राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच में कैकयी द्वारा राजा दशरथ से दो वर मांगे राम को 14 वर्ष का बनवास ओर भरत को राज्यभिषेक की मांग के पीछे मंथरा की मति नही थी यह कालचक्र का प्रभाव था।
कैकयी के द्वारा राजा दशरथ से बर मांगते समय कही गयी बात-
सुनहु प्राणप्रिय भावत जी का।
देहु एक बर भरतहिं टीका।।
मांगऊ दूसर बर कर जोरी
पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी।।
अर्थात- है प्राण प्यारे। सुनिए मेरे मन को भाने वाला एक वर तो दीजिये, भरत को राजतिलक ओर है नाथ! ओर दूसरा बर भी हाथ जोड़कर मांगती हूँ, मेरा मनोरथ पूरा कीजिये।
राम बनवास की मार्मिक लीला के साथ मानव जीवन के लिए आत्मसात करने वाली बहुत बड़ी सीख है जो कि हमारे समाज में सम्मान और आदरभाव का अभाव हर पल देखने को मिल रहा है। मानवता के पाठ को पढ़ने के लिए रामलीलाओं का आयोजन लगभग हर गावँ या क्षेत्र में होता है हम सभी का कर्तव्य है कि हम अपनी नई पीढ़ियों को इन आयोजनों में अवश्य प्रतिभाग करवाएं।
इस अवसर पर रामलीला समिति के अध्यक्ष श्री ज्ञान प्रकाश कोठारी, कोषाध्यक्ष सुनील कोठारी, सचिव भुवनेश कोठारी, कोटेश्वर महादेव मन्दिर समिति के अध्यक्ष श्री विजेंद्र प्रसाद कोठारी, राजेश कोठारी, विजय राम गौदियाल, सीताराम कोठारी, महिला मंगल दल अध्यक्ष अनिता कोठारी सहित समस्त ग्रामसभा व क्षेत्र के दर्शकों की उपस्थिति रही।