खेती और बागवानी के क्षेत्र मे कार्य करने वाले प्रगतिशील काश्तकार का 94 साल की उम्र मे निधन

कृषि क्षेत्र मे प्रगतिशील कृषक, कृषि पंडित सुप्रसिद्ध समाजसेवी मुरली सिंह चौधरी ने 94 वर्ष की उम्र मे निधन,
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 हिमालय की आवाज।

 खेती और बागवानी के क्षेत्र मे कार्य   करने वाले प्रगतिशील काश्तकार  व समाज सेवी  का 94  साल की उम्र मे निधन।

 विकलांगता के बावजूद स्वाभिमान और सम्मान के साथ खेती और बागवानी को  लाभप्रद स्वरोजगार के रूप में  जिस तरह प्रस्तुत किया, उससे प्रेरणा लेकर आज जनपद ही नहीं अपितु पूरे गढ़वाल मंडल में  बागवानी और नगद फसल के उत्पादन से हजारों युवाओं की जिंदगी संवर रही है। 

कृषि क्षेत्र मे प्रगतिशील कृषक, कृषि पंडित सुप्रसिद्ध समाजसेवी   मुरली सिंह चौधरी ने 94 वर्ष की उम्र में भले ही नश्वर शरीर छोड़कर इस धरा धाम से विदा ले ली हो लेकिन विकलांगता के बावजूद स्वाभिमान और सम्मान के साथ खेती और बागवानी को  लाभप्रद स्वरोजगार के रूप में  जिस तरह प्रस्तुत किया ,उससे प्रेरणा लेकर आज जनपद ही नहीं अपितु पूरे गढ़वाल मंडल में  बागवानी और नगद फसल के उत्पादन से हजारों युवाओं की जिंदगी संवर रही है और समाज सेवा की ऐसी ललक कि अपने स्वार्थ को छोड़कर समाज की बेहतरी के लिए धर्मार्थ अस्पताल का  वरदान मांगा जिससे हजारों नेत्र रोगों से पीड़ित लोगों की जिंदगी संवर गई।

 जनपद मुख्यालय से 7 किलोमीटर दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर ग्राम पंचायत रतूड़ा निवासी प्रगतिशील कृषक मुरली सिंह चौधरी का 94 वर्ष की उम्र निधन हो गया। वह लम्बे समय से अस्वथ चल रहे थे।  एक दुर्घटना में एक हाथ  से विकलांग होने के बावजूद स्वाभिमानी मुरली सिंह चौधरी ने जीवन में विकलांगता को चुनौती देते हुए ऐसे प्रतिमान गढ़े कि उनकी लगन और खेती के प्रति जुनून से स्व हेमवती नन्दन बहुगुणा  भी उनके कायल हो गए। बंजर जमीन को उर्वरा कर लाभकारी कैसे बनाया जा सकता है , इसमें उन्होंने महारत हासिल की। मिट्टी और परंपरागत बीजों के संदर्भ में  उनके  अनथक प्रयास और प्रयोगों के कारण  हासिल  ज्ञान की बदौलत ही उन्हें सरकार द्वारा कृषि पंडित की उपाधि से नवाजा गया।  

 इतना ही नहीं उनके बंजर मिट्टी को उर्वरा बनाने की स्थानीय ज्ञान और वैज्ञानिक कौशल को जी बी पंत कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा काफी सराहा गया। समाज सेवा के क्षेत्र में सदा अग्रणी रहने वाले मुरली सिंह  चौधरी ने निस्वार्थ सेवा के संकल्प को जीवन हिस्सा बनाया। सन 1982/83 में कांची कामकोटि कांचीपुरम पीठ तमिलनाडू के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी श्री जयेंद्र सरस्वती जी विजय यात्रा पर बदरी केदार की यात्रा आए तो जगद्गुरु शंकराचार्य उन्हीं स्थानों पर रुके जहां आदिगुरु शंकराचार्य रुके थे।

 वर्तमान इंटर कॉलेज रतूड़ा के मैदान में जगद्गुरु  शंकराचार्य का  रात्रि पड़ाव था। समाज सेवी मुरली सिंह ने स्थानीय स्तर पर व्यवस्था में अतुलनीय योगदान दिया और रात्रि को शंकराचार्य जी के पावन सानिध्य में आयोजित भजन कीर्तन में बढ़ चढ कर भाग लिया। विकलांगता के बावजूद भजन संध्या में तल्लीनता और सेवा के प्रति निष्ठा के भाव पर जगदगुरू शंकराचार्य खासे प्रभावित हो गए। सुबह आगे की यात्रा के प्रस्थान से पूर्व, जगद्गुरु शंकराचार्य ने मुरली सिंह को अपना स्वरोजगार सुरु  करने लिए मदद की भावना व्यक्त की, ताकि स्वावलंबन के साथ आगे बढ़ सके।

  लेकिन मुरली सिंह ने क्षेत्र में चिकित्सा सेवाओं के अभाव पर  लोगों की  पीड़ा व्यक्त करते हुए जगद्गुरु शंकराचार्य से रतूड़ा में एक धर्मार्थ अस्पताल खोलने की अपील की।जिसे शंकराचार्य जी ने गंगा जल लेकर  सहर्ष स्वीकार कर लिया। अपनी नाप  भूमि के साथ  ही स्थानीय लोगों से जमीन दान कराने  में मुरली सिंह चौधरी ने बड़ी  भूमिया निभाई ।

 सन 1986/87 में कामकोटि शंकाराचार्य स्वामी श्री जयेंद्र सरस्वती के पावन सानिध्य में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता  एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड्स कृष्ण कुमार के        नेतृत्व में रतूड़ा में कांची कामकोटि शंकर सेवा ट्रस्ट के माध्यम से चिकित्सा यूनिट सुरु की गई। उस दौर में जब पहाड़ में एम बी बी एस चिकित्सक कहीं दूर दूर तक उपलब्ध नहीं थे , उस दौर में कांची कामकोटि शंकाराचार्य अस्पताल रतूड़ा में सुप्रसिद्ध चिकित्सा विशेषज्ञ एम एल कस्तूरी एम डी मेडिसन द्वारा  उल्लेखनीय सेवाएं दी गई।

स्थापना के बाद विगत 37सालों में नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में यह अस्पताल वरदान साबित हुआ। विगत 37 सालों के दौरान 10 हजार से अधिक नेत्र रोगियों को लैंस प्रत्यारोपण कर इस धर्मार्थ अस्पताल द्वारा नेत्र ज्योति प्रदान की गई है। कांची कामकोटि कांचीपुरम पीठ के वर्तमान  जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती द्वारा अस्पताल    के उच्चीकरण की पहल गतिमान है वहीं आधुनिक शिक्षा के साथ साथ नैतिक शिक्षा को केंद्र बिंदु बनाते हुए विद्यालय की स्थापना की जा रही है।कुल मिलाकर स्व चौधरी का सामाजिक योगदान आने वाली भावी पीढ़ियों के लिए  मार्गदर्शक सिद्ध होगा।


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