हवा का रुख बदल रहा केदारनाथ उपचुनाव में।
प्रत्याशी घोषित होने के बाद समीकरण बदलने लगे हैं।
क्या धार्मिक क्षेत्र अयोध्या ओर बद्रीनाथ की सीट पर हार देख चुकी भाजपा केदारनाथ सीट पर मिथक तोड़ देगी।
केदारनाथ विधानसभा उप चुनाव के ऐलान होते ही राजनैतिक अखाड़े में विसात बिछनी शुरू हो गयी थी जो मतदान के दिन प्रभाव दिखाएगी। मतदाताओं पर किस प्रत्याशी का प्रभाव अधिक है यह चुनाव की बयार में तरह तरह के रंग देखने को मिल रहे। मतदाताओं को करीब से जानने की जुगत मे लगे समीकरणों के ज्ञाता भी असमंजस में हैं।
यदि मुद्दों की बात करे तो केदारनाथ यात्रा का बाधित होना, केदारनाथ में हक हकूक की जमीन ओर होटल लॉज आदि के लिए ली गयी जमीन के बदले जमीन आवंटन न होना, रजिस्ट्रेशन की बाध्यता, आदि कई मुद्दे है पर यह मुद्दे कुल वोट के 10 से 15 फीसदी तक चुनाव को प्रभावित करेंगे यदि देखा जाए तो यह कैडर वोट कांग्रेस ओर भाजपा की ही होंगी जो कि लगभग 60 से 65 प्रतिशत तक निर्दलीय प्रत्याशियों के हक में जा सकता है।
भाजपा का संगठन मजबूत है जिसने हर मतदाता तक अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनवाई है वही इस मामले में कांग्रेस का संगठन बहुत पीछे है। भाजपा के प्रत्याशी चयन में रहा संशय ओर जिन्हें टिकट न मिल पाया उनके चुनाव लड़ने की बातें हवा में तैर रही थी जो कि राजनैतिक विश्लेषकों के लिए एक अवसर बनता पर अंदुरुनी लड़ाई खुले में न आने से इस बात पर मुहर लगती है कि भाजपा का संगठन मजबूत है। वही परिवारबाद के मिथक को तोड़ती रणनीति भविष्य के लिए एक प्रयोग बनेगा जो कि आजतक देखने को नही मिला था।
चुनावी समर अपने चरम पर है और विधानसभा के उपचुनाव को लेकर तमाम कयासों के बीच निर्दलीय उम्मीदवारों के द्वारा अपनी दावेदारी को मजबूती से रखना पर उन मुद्दों तक पहुंच न होना जिन मुद्दों को लेकर चुनाव लड़कर जनता के मुद्दों को मंच देना था सभी राष्ट्रीय दल हो या क्षेत्रीय दल स्पष्ट रूप से पारम्परिक रूप से ही चुनाव लड़ रहे हैं।
कैडर वोट बैंक में 19 ओर 20 का अंतर है। इस बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव में रोचकता ला दी है देखना यह है कि निर्दलीय अधिकतर किस पार्टी का कैडर वोट बैंक को अपने पक्ष में मिलाने में कामयाब हो पाते हैं।
सबसे गजब इस चुनाव में देखने को यह मिला अभी तक पहाड़ के मुद्दे ओर पहाड़ का हित सिर्फ केदारनाथ यात्रा पर फोकस बनाये हुए सभी विपक्षी प्रत्याशी इन्ही मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं जो कि महत्वपूर्ण मुद्दा भी है पर पहाड़ से पलायन, जंगली जानवरों से फसल को नुकसान, जैविक जनपद घोषित होने के बाद भी कृषि इनपुट जेसे बीज हाइब्रिड के प्रयोग से कंगाल होता किसान पर किसी की नजर नही है। न यहां के मतदाताओं में यह मुद्दा चुनावी नही बन पाया है बनेगा भी क्यो इस मुद्दे पर गहनता से अध्ययन की जरूरत है। जबतक खेती किसानी महिलाओं पर निर्भर रहेगी तबतक ऐसे ही होना बोया बीज भी वापस नही मिल रहा। अमूमन देखा जाए तो जहां पर भी पुरुष वर्ग के द्वारा खेती किसानी शुरू की गई है वहां के परिणाम सुखद आएं हैं खेती किसानी हाड़ तोड़ मेहनत का काम है जिसे पुरुष वर्ग करे तो तस्वीर बदल सकती है।