आखिर कब खुलेंगे स्वरोजगार के नाम पर भवनों के ताले

REAP ओर NRLM परियोजनाओं के द्वारा आखिर विकास हुआ तो किसका,
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 हिमालय की आवाज-

आखिर कब खुलेंगे स्वरोजगार के नाम पर भवनों के ताले।

आजीविका परियोजना (ILSP) के द्वारा सहकारिताओं के संवर्धन हेतु वित्त पोषण से बने कलेक्शन सेंटरों में लगे तालों का राज क्या है।



जनपद रुद्रप्रयाग में 2012-13 से  वित्त वर्ष 2021-22 तक आइफेड द्वारा वित्त पोषित व ग्राम्य विकास विभाग द्वारा संचालित एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना के माध्यम से विकासखण्ड जखोली में 6 व विकासखण्ड अगस्त्यमुनि में 9 कलेक्शन सेंटरों का निर्माण किया गया था जिसमे से एक कलेक्शन सेंटर ग्राम शीशों में श्री केदारनाथ मन्दिर प्रसाद हेतु ग्रोथ सेंटर जिसमें मशीनों की स्थापना हो रखी है, सुमाड़ी में कृषियंत्र यूनिट, भीरी में सहकारिता का होटल,  चन्द्रनगर में बेमौसमी सब्जियों को स्टोर करने हेतु कूलिंग चेम्बर, ग्राम भीरी में सेनेट्री पेड हेतु लगाई गई मशीन जंग खा रही है आखिर क्यों इन भवनों पर ताले लगे हैं। 

  कौन है इनका जबाबदेह यदि सहकारिता जबाबदेह है तो जनपद में प्रभागीय परियोजना प्रबंधन इकाई की स्थापना किसलिए की गई है।

 प्रभागीय परियोजना प्रबंधन के कर्मचारी आखिर क्यों  कुम्भकर्णी नींद से जाग नही रहे। यदि इनके प्रयास सफल नही हो रहे तो इसका कारण क्या हैं ? क्यो इतना पैसा खर्च किया गया यह सब जबाब प्रभागीय परियोजना प्रबंधन इकाई के मुखिया को देने होंगे ओर पाठकों तक यह जबाब इस पोर्टल के माध्यम से पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किये जायेंगे।

कहने को आजीविका परियोजना का कार्यकाल समाप्त हो गया और यह परिजोजना अब बड़े स्तर पर काम कर रही है जिसे ग्रामीण उद्यम वेग परियोजना (Rural Enterprises Acceleration Project) के नाम से जाना जा रहा है।  27 सितम्बर 2024 को हुए आदेश के क्रम में इस परियोजना का नाम ग्रामोत्थान होगा।

इस परियोजना का मकसद  ग्रामीण परिवारों की आय दुगनी करने और ग्रामीण इलाकों से पलायन को कम करने तथा क्लस्टर आधारित उत्पादन प्रणालियों के जरिये आय अर्जन के स्रोत को बढ़ाना है।

परियोजना अभी भी UGVS उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास समिति के द्वारा ही संचालित किया जा रहा है और वही पुराना स्टाफ इस परियोजना को संचालन करने में अपनी भूमिका निभा रहा है जो कि सवालों के घेरे में इसलिए नही  आ पाया कि कोई भी परियोजना के बारे में अधिक जानकारी नही रखता है।

अब सवाल है कि 15 भवन जो कि 15 चयनित क्लस्टरों में बने हैं जिन्हें उत्पाद संग्रहण के साथ साथ अन्य रोजगार परक गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जा सकता था तो आखिर इन भवनों पर ताले क्यों।

आखिरकार लगभग 6000 से अधिक शेयरधारक जो इन संग्रहण केंद्रों से जुड़े थे और प्रत्येक शेयरधारक का 4000 रुपया शेयरधन जमा था जो 6000 शेयरधारकों का  कुल 24000000 (दो करोड़ चालीस लाख रुपये के लगभग सहकारिताओं में जमा था और सहकरिताओ द्वारा किये गए व्यापार से हुए लाभ का धनराशि भी जुड़ेगी तो यह धनराशि निश्चित बढ़ेगी इस धनराशि को कहा उपयोग किया गया या यह सहकारिताओं के खाते में है तो उसका उपयोग करके सहकारिताओं को सशक्त क्यो नही किया जा रहा है। क्यो इन सहकारिता कार्यालयों के ताले नही खुल रहे हैं। जबकि सहकारिताओं की वार्षिक आम सभाएं भी हो चुकी हैं।

आखिर NRLM ओर REAP के द्वारा कराए गए रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रमों में कौन लोग शामिल हुए थे और आजतक जितने भी प्रशिक्षण रोजगार के नाम पर करवाये गए वह सिर्फ खाना पूर्ति तक सीमित क्यो रहे। क्यो धनराशि का दुरप्रयोग प्रशिक्षणों में किया गया यदि शेयरधारक प्रशिक्षण लेकर अपना रोजगार उस प्रशिक्षण से सिखकर नही अपना रहे तो ऐसी परियोजना को  संचालित क्यो किया जा रहा।

हिमालय की आवाज़ कुछ अनसुलझे सवाल छोड़ रहा ओर इन अनसुलझे सवालों के जबाब क्रमशः लेखों की श्रृंखला को प्रकाशित करके देगा।

अगला अंक CCL के जाल में फंसते ग्रामीण पर होगा जिसके लिए पाठकों के सुझाव आमंत्रित हैं।

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