पौराणिक परम्पराओं की समृद्ध विरासत भव्य पांडव लीला का चन्दी गावँ में आयोजन।
पांडवों की कर्मस्थली उत्तराखण्ड के केदारखण्ड की लोकमान्यताओं और लोकजीवन में पाण्डव अभिन्न हिस्सा हैं।
उत्तराखंड की भूमि भगवान भोलेनाथ की तपस्थली के साथ पुराणों में वर्णित अनेकों देवऋषि, महर्षि और देवताओं की तपस्थली रही है, जो कि यहां कि लोक एवं पौराणिक परम्पराओं की समृद्ध विरासत को अपने अंदर समेटे हुए है। इसी विरासत में पाण्डवों का अभिन्न हिस्सा यहां की लोक संस्कृति में रचा बसा है जिसका प्रमाण पुराणों में भी मिलता है क़ि पाण्डवों ने अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा यहां पर रहकर मंदिरों के निर्माण से लेकर गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए केदारखण्ड का चुनाव करना यहां की महत्ता को प्रदर्शित करता है।
समय समय पर विभिन्न क्षेत्रों में अनेकानेक कार्यक्रमों के माध्यम से इस विरासत के दर्शन होते रहते हैं । पांडवों की कर्मस्थली होने के कारण उत्तराखंड के लोकमानस व परम्पराओं पर पांडवों की स्पष्ट छाप दृष्टिगोचर होती है। पांडव यंहा के कण कण में रचे बसे हैं। इसी कारण यंहा गांव गांव में पांडव लीलाओं के माध्यम से उस सम्बन्ध को याद किया जाता रहता है जोकि अब एक लोक परम्परा व संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है।
संचार के साधन न होना और लोकपरम्परा की विधा का मौखिक होना जटिल समस्याएं होने के बाद भी लोकसंस्कृति को परम्परागत रूप से आज भी बिना किसी बदलाव के निर्वहन किया जा रहा जो कि सशक्त और लोकजीवन में रची बसी हुयी है और अपनी परम्पराओं के निर्वहन कर्तव्य मानने वाले आज अपना योगदान समाज में परम्पराओं को जीवित रखने में दे रहे हैं।
इस अवसर पर पाण्डव लीला आयोजन समिति के नवयुवक मंगल दल सदस्य सहित महिला मंगलदल सदस्य, व समस्त ग्रामवासी उपस्थित रहे।


