जिन हाथों में कलम होनी थी वो आज पत्थर उठाने को मजबूर हैं, देहरादून में हुई लाठीचार्ज का जिम्मेदार कोन।
उत्तराखंड में पेपर भर्ती प्रकरण से आम जन मानस के मन सरकार के प्रति व परीक्षा आयोजित करने वाले संस्थान इनमें उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की विश्वसनीयता कितनी रह गयी है यह सवाल अब सवाल नहीं रह गया। दोनों आयोग चाहें कितना भी खुद को पाक साफ़ बताने की कोशिस करें पर जो जख्म आम जनमानस के मन में बन गया उसी प्रतिफल है जिन हाथों में कलम होनी थी उन हाथों में आज पत्थर हैं।
बेरोजगारों के साथ छलावा और अपनी जायज मांगों को मनवाने के लिए कोई ये बेरोजगार यदि धरना प्रदर्शन करता है तो मशीनरी को चाहिए था की धीरज से कार्य करते एक तो भाजपा की छवि को पेपर लीक काण्ड से कितना नुकसान हुआ है हर आदमी के मन में आक्रोश है दूसरा आज की लाठी चार्ज ने रही सही कसर को पूरा कर दिया है।
पुलिस के द्वारा किया गया लाठी चार्ज और हाथों में पत्थर लिए बेरोजगार दोनों जायज नहीं हैं हम हिंसा का किसी भी तरह से समर्थन नहीं करेंगे और जो पक्ष जायज है यदि हिंसा में वह सम्मिलित हुआ है तो उसका पक्ष लेंंगे। तो सवाल उठ रहा है जिन हाथों को कलम पकड़ना था उन हाथों में पत्थर और पुलिस द्वारा की गयी लाठीचार्ज दोनों ही सही नहीं हैं तो इस अमानवीय घटना जो जनाक्रोश था को दबाने के लिए कोन जिम्मेदार है। जब घटना रात को हुई तो दिन के समय लाठी चार्ज क्यों। राजपुर रोड व्यस्त इलाका है सुबह के समय नौकरी वाले, व्यावसायी, खरीददार भी रहे होंगे तो क्या वो भी गेहूं में घुन की तरह नहीं पिसे होंगे।
बेरोजगार युवाओं का राजपुर रोड को घेरना यह मुद्दा बिलकुल जायज है। वर्षों की मेहनत और आशा जिसे पेपर लीक करके दमन किया गया हैं। पेपर लीक जैसे मामलों ने युवाओं के सब्र का बांध तोड़ दिया है। कल देहरादून के गाँधी पार्क में शांति पूर्ण धरना युवाओं ने दिया लेकिन देर रात देहरादून पुलिस की कार्यवाई और उनके द्वारा किए गए बल प्रयोग ने युवाओं क़ो आक्रोषित कर दिया और बड़ी संख्या में युवाओं ने देहरादून की VIP सड़क क़ो घेर दिया जिसका असर दूर तक होगा।
सरकारें चाहे किसी भी दल की रही होंगी यह उत्तराखंड ही नहीं समस्त भारत की दशा है पीठ हमेशा बेरोजगार की रही और लाठी पुलिस की। क्यों उन पेपर लीक करने वालों को ऐसे दौड़ा दौड़ा के लाठीचार्ज नहीं किया गया वहां संविधान उनके अधिकारों की रक्षा करता है तो इन बेरोजगारों को लाठी से कुठने की शक्ति अचानक और लगभग हर प्रदर्शन में कैसे मिलती है। सरकार की गलती खामियाजा बेरोजगार पुलिस की लाठी खाकर झेलें यह मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना और समाज में उनकी छवि को खराब करने का मामला बनता है तो इस घटना के जिम्मेदारों पर क्यों कार्यवाही न हो।
बेरोजगार युवा जिनके साथ सिस्टम ने छलावा किया है उनका राजपुर मार्ग को घेरना किसी भी दशा में अनुचित नही कहा जा सकता है। पीड़ित धरना प्रदर्शन अपने क्षेत्र में नही करेंगे तो कहां करेंगे या तो सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि यह जो लड़के धरना प्रदर्शन कर रहे थे वो नाजायज है।
दूसरी तरफ देखें तो पुलिस को यह कार्यवाही देर रात ही करनी चाहिए थी जिससे सुबह के समय के लिए शांति व्यवस्था बनती ओर आम नागरिक परेसान नही होता। देहरादून की मुख्य सड़कों पर अराजकता का माहौल बनना ओर ज्यादातर युवाओं द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करते हुये दिखाई देना सही था। इतनी बड़ी भीड़ में हुड़दंगी भी होंगे यह कहना अनुचित नही होगा जिन्होंने आम लोगों को रोक के रखा, गाड़ियों की आवाजाही बाधित रखी और पुलिस का दोपहर बाद सक्रिय होना यह बात गले नही उतर रही।
देहरादून के गांधी पार्क के सामने विरोध कर रहे बेरोजगार युवा और पेपरलीक से प्रभावित युवाओं द्वारा जाम लगाया गया था। बेरोजगारों का कहना था कि पेपर लीक की जांच सीबीआई से करवाई जाए और दोषियों को कड़ीं सजा दी जाय। सरकार किसके लिए उत्तरदायी है जनता के लिए या स्वयं के लिए यह सरकार को समझना चाहिए कि जिसे हम अहम मान रहे वो कितना नुकसान करेगा भविष्य में।
पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करने से पहले युवाओं को समझाया क्यों नही गया और युवाओं की भी गलती है कि पुलिस के अधिकारियों से अभद्रता की गई जो सही नही थी, पर मानवीय पक्ष देखें तो युवाओं के भविष्य के साथ हुए खिलवाड़ के कारण यह आक्रोश बना था यदि पेपरलीक न होता तो क्यों ये लोग सड़कों पर उतरते ओर क्यों लाठीचार्ज के शिकार बनते। अधिकारी भी सरकार का हिस्सा हैं वह प्रतिनिधि बनकर गए हैं तो उनको भी अपने अहम पर इस बात को नही लेना चाहिए था क्योंकि इस प्रकरण से पहले ही सरकार की फजीहत हो चुकी है उस समय को भी याद करना चाहिए जब पेपरलीक कांड ओर विधानसभा में हुई बैकडोर भर्ती पर बात करने के लिए सरकार द्वारा अपने किसी भी उस सदस्य को बात करने से मना कर दिया था जो कि अधिकृत नही था सबने देखा किसी ने जुबान नही खोली चुनिन्दा चयनित प्रवक्ताओं के अलावा।
युवाओं की मांग नकल के मामले की सीबीआई जांच और जबतक नकल विरोधी कानून नही बन जाता तबतक कोई भी भर्ती परीक्षा न कराई जाए। यह मांग को लेकर राजपुर सड़क से घण्टाघर की तरफ बढ़े युवाओं पर लाठीचार्ज होना शर्मनाक है। प्रदेशभर के पीड़ित युवाओं का देहरादून में एकत्र होना कहीं न कहीं इंटेलिजेन्स का फेलियर माना जायेगा क्यों उन्हें भनक नही लगी कि इतनी बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी देहरादून में इकठ्ठे होंगे जिससे भीड़ जुटेगी ओर अव्यवस्था होगी।
धामी सरकार इस प्रकरण पर नजर बनाए हुए है और मुख्यमंत्री धामी भी इस प्रकरण से शत प्रतिशत नाराज होंगे यह आशा है जिले के कुछ अधिकारियों पर गाज गिरेगी ओर लाठीचार्ज से घायल युवा अपना इलाज हॉस्पिटलों में करवातें रहेंगे जिनको देखने न पक्ष जाएगा न विपक्ष।
सवाल का जबाव अनसुलझा ही रहेगा -
1- बेरोजगारों पर लाठीचार्ज क्यों कि गयी।
2- सरकार किसी भी दल की हो हमेशा पीठ बेरोजगारों की ही क्यों तोड़ी जाती है पुलिस की लाठी से।
3- बेरोजगार जब गुरुवार से देहरादून में धरना दे रहे थे या तैयारी कर रहे थे तो सरकार का कोई भी सदस्य जैसे कोई मंत्री या अन्य गणमान्य उन बेरोजगारों के बीच उन्हें दिलासा दिलाने क्यों नही गया।
4- क्या नकल प्रकरण के बाद भाजपा की छवि लोगों के मन मे केसी बनी और बेरोजगारों पर इस मुद्दे को लेकर धरना कर रहे युवाओं पर लाठीचार्ज के बाद सरकार की छवि को कोई नुकसान नही पहुंचा है।
5- नकल प्रकरण की जांच को सीबीआई करे यह मामला जनहित का है इसे जनता की मांग समझकर क्यों यह मांग को नही माना जा रहा है।


