रामरतन सिह पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
उत्तराखंड मे भ्रमण पर आयी जर्मन के अमीर घराने की लड़की ऊखीमठ के कालीशिला शक्ति पीठ मे बन गयी सन्यासिनी।
विगत 30 सालो से कर रही हैं साधना नाम है सरस्वती माई।
जहाँ हिन्दू अपने शास्त्रीय विधि विदानो को त्याग कर पश्चिमी देशो की संस्कृति को अपना रहे हैं। वही हमारे धर्म गूरुओ की कृपा से लाखो विदेशीयों अपना कूल,धर्म और धर्म व देश को छोड़कर हिन्दू धर्म के अनुसार विभिन्न गुरुओ से दीक्षित होकर भारत मे ही रहकर आत्मकल्याण कर रहे है।आपकी जानकारी के लिए बता दे कि उत्तराखंड के कालीशिला धाम मे औधौगिक क्रांति वाले विकसित देश की रहने वाली जर्मनी मूल की सरस्वती माई अपना सब कुछ त्याग कर ईश्वर की भक्ति मे लीन होकर सन्यासिन बन गयी और अपना नाम बदलकर सरस्वती माई रख दिया।
सरस्वती माई लगभग 30 बर्षों से रूद्रप्रयाग के ऊखीमठ तहसील के अन्तर्गत कालीमठ से 6 मीटर पैदल चलकर खड़ी चढाई चढने के बाद ऊंची चोटी पर स्थित कालीशीला शक्तिपीठ मे रोजाना तपस्या करती हैं। ऐसा बताया जाता है कि माई जी जर्मनी के एक संपन्न घर मे पैदा हुई थी, लेकिन अब सन्यास के चलते उनको सांसारिक वस्तुओं से कोई मोह नही है।
ये एक साधारण सी झोपड़ी मे रहती है। सरस्वती माई अपने लिए साग सब्जी भी स्वयं उगाती हैं। ये गढ़वाली व हिन्दी भाषा को पूरी तरह से बोलती और समझती है। कालीमठ क्षेत्र मे सरस्वती माई के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है,ये सन 2000की नंदा देवी राजजात भी कर चुकी है। इसी कालीमठ मे सरस्वती माई साधना करती हैं। कहा जाता है कि जब एक बार सरस्वती माई जर्मन मे थी तो कालीशीला उनके सपनो मे आयी, तो फिर क्या हुआ सपने मे उन्हें रास्ता भी बताया गया था कि यहां उन्हें सांसारिक जीवन से मुक्ति मिलेगी। उसके बाद वे जर्मन से उत्तराखंड आयी।
सरस्वती माई जी कहती है हैं कि उन्हें इस स्थान पर असीम शान्ति मिलती है। फिलहाल घर पर क्या है क्या नही वो सब कुछ भूल चुकी हैं। अब आप भी जानिए कि कालीशीला देवभूमि की कैसी अदभूत शीला है।
आपको बता दे कि मां दुर्गा ने शुम्भ निशुम्भ और रक्त बीज का संहार करने के लिए कालीशीला12 बर्ष की कन्या के रूप मे प्रकट हुई थी।कालीशीला मे देबी देवताओ के 64 यंत्र मौजूद हैं, मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी देबताओ ने मां भगवती की तपस्या की थी और तब मां भगवती प्रकट हुई और दोनो देत्यों का संहार किया।
देखिये- कालिशिला के महत्व और इतिहास बाबा बरखागिरी महाराज से-