वन विभाग रुद्रप्रयाग के विभिन्न नर्सरियो मे कार्यरत मजदूरों को नही मिला एक साल से अधिक समय से वेतन

वन विभाग की नर्सरी में काम करने वाले मजदूरों को समय से नही मिल रहा वेतन, आर्थिक संकट से गुजर रहे मजदूर,
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 रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।

वन विभाग रुद्रप्रयाग के विभिन्न नर्सरियो मे कार्यरत  मजदूरों को नही मिला  एक साल से अधिक समय से वेतन।

वेतन न मिलने से नर्सरी मजदूरो के सामने छाया भरण पोषण का संकट।

वनविभाग के अधिकारियों की लापरवाही का दंश झेलने को मजबूर है रुद्रप्रयाग के नर्सरी मजदूर।

रूद्रप्रयाग-सरकार का नारा है कि कोई भी व्यक्ति  भूखा न रहे, सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसे मूलभूत  सविधाओं  के साथ साथ सरकार बड़े बड़े दावा तो करती है ओर इन दावों पर बहुत से दावों पर सरकार खरी उतरी है जिसका श्रेय कार्ययोजना ओर क्रियान्वयन करने वाले को जरूर मिलना चाहिए।

वही हम रोजगार की बात करे तो रूद्रप्रयाग के वन विभाग की नर्सरियो कई पुरुष-महिलाएं अपने परिवार के भरण पोषण हेतु इस बेरोजगारी मे रात दिन एक करके ध्याड़ी, मजदूरी का कार्य कर रहे है, लेकिन आलम यह है कि आज इन मजदूरो को एक बर्ष से भी ऊपर का समय गुजर जाने के बाद भी उनका वेतन नहीं मिला जिससे कि आज इन तमाम मजदूरो के सामने भरण पोषण का संकट पैदा हो गया है, वही एक तरफ सरकार रोजगार देने की बात कर रही वही दूसरी तरफ सरकारी नर्सरियो मे बंधुवा मजदूर की तरह बिना वेतन का काम हो रहा है यह सही नही है।

आखिर मजदूरो के साथ ये कैसा न्याय किया जा रहा है। एक साल से नर्सरी मे कार्यरत मजदूरो को वेतन न मिलना उनके परिवार के लिए आर्थिक संकट का कारण बन रहा है।

एक वर्ष से अधिक समय से लगातार मेहनताना न मिलने से उन्हें बंधुवा मज़दूरों की तरह अपनी नर्सरी में काम करवाना कहाँ तक उचित है। यानी यह भी कहा जा सकता है कि मजदूर एक बंधुवा ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मजदूर बनकर बनकर जिन्दगी जीने को मजबूर है

यदि ये लोग अपना मेहनताना मांगने के लिए किसी सक्षम अधिकारी से कहते हैं तो इन्हें नोटिस पर नोटिस कार्य को सही न करने के नाम पर कार्यवाही करने की धमकी भरे पत्र लगातार दिए जा रहें हैं। आखिर धमकी देने का मतलब क्या होता है, क्या वो अधिकारी अपने जेब से उन मजदूरो वेतन दे रहा है।

यदि नर्सरी के मद में बजट नही है तो क्यों नर्सरी को तैयार किया जाता है और क्यों मजदूरों को नर्सरी में भूखे मरने को छोड़ा जाता है।

क्यों न विभाग की नर्सरी के लिए उत्तरदायी अफसर या कार्मिक का मानदेय एक साल के लिए रोका जाए फिर पता चले आटे चावल का भाव।

मामला रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के उत्तरी व दक्षिणी रेंज का है। जिसमें कार्यरत  महिलाएं व पुरुष कार्यरत हैं घर की स्थिति दयनीय थी तो इन लोगों ने वन विभाग की नर्सरी की जिम्मेदारी अपने परिवार के भरण पोषण इस नर्सरी में काम करके करने की सोची पर वन विभाग अपने मूल पेड़ पौधों के मालियों को ही भूल गया।


इस खबर पर जिला प्रशासन रुद्रप्रयाग व वन विभाग के उच्चाधिकारी अवश्य संज्ञान लेकर इन नर्सरी के मालियों की मेहनताना जारी करवाएंगे ओर आगे से इनकी भीख मांगने की नोबत न आये इसपर अवश्य ध्यान रखने के साथ अपनी नाकामयाबी छुपाने को इन मजदूरों को नोटिस देने वाले अधिकारी से कारण बताओ नोटिस जारी करेंगे कि यदि नर्सरी में काम सही नही हुआ तो विभाग की तरफ से किसे इनका सुपरवाइजर या नियंत्रक नियुक्त किया गया था क्यों न उनके वेतन की कटौती करके नर्सरी में नोटिस के अनुसार हुए नुकसान की भरपाई की जाए।

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