परशुराम भट्ट/जखोली
भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, फिर भी यह एक युवा राष्ट्र है। 1947 की आजादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को भारत के लोकतंत्र के नाम से जाना जाता है। लोकतंत्र का दूसरा नाम प्रजातंत्र भी हैं। लोकतंत्र शासक करने की एक प्रणाली हैं, जिसमे लोग अपना प्रतिनिधि खुद चुन सकते हैं, और जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि शासन की जिम्मेदारी सँभालते हैं। जनता के प्रतिनिधि जनता के लिए और जनता के हित के लिए शासन करते हैं।
आज हम अपने लोकतंत्र में कितनी खामियां निकाल दें पर जब हम अतीत को विचार करके देखतें हैं तो लोकतंत्र रोमांचकारी उपलब्धि है । खुदमुख्तारी का भाव भारत के पहले चुनाव के समय किस तरह रहा होगा। हर कोई यही सोचता होगा कि में अपनी सरकार बना सकता हूँ और अब में स्वतंत्र हूँ अपना भविष्य को सुरक्षित करने वाली सरकार को बनाने के लिए। 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक लगभग चार महीने की चुनाव प्रक्रिया ने भारत को एक नए मुकाम पर खड़ा किया था।
2022 में प्रवेश करते ही पांच राज्यों में चुनावी शंखनाद जनवरी माह के दूसरे सप्ताह को चुनाव आयोग की अधिसूचना के बाद हो गया है। अब यदि हम 1952 से 2022 के बीच 70 सालों की राजनीति के कारण आम जनमानस में राजनीति के प्रति सदभाव या राजनीति के प्रति उदासीनता को देखें तो, पाएंगे कि आम जनमानस में अपने अधिकारों को पाने की ललक और अपनी क्षमता का आभाष बहुत अधिक हुआ है। यही लोकतंत्र की सही मायनों में झलक है कि आम नागरिक भी अपने हितों की रक्षा व देश के लिए सोचने लगा है।
अब सवाल हर किसी के मन में उठता है कि - इस बार चुनाव के मैदान में वही दल हैं जिन्होंने हमारी आवाज बनकर चुना जाना है उन्होंने पिछले वाले कार्यकाल में क्या किया। जनता से मिलना उनकी समस्याएं जानना उनका निदान करना यही चुने हुए नेता का मुख्य कार्य है। क्या जनता की समस्या हल हो पाईं हैं अथवा नहीं।
आज हर कोई पार्टियों को दोषी बताने से नही चूकता है। जबकि सभी पार्टियों की अपनी सैद्धान्तिक विचारधारा होती है।कोई भी पार्टी खराब नहीं होती है,परन्तु जब उसमे गलत और भ्रष्ट लोगों का आगमन होता है तो तब हम उस पार्टी को गलत कहते हैं। जैसे 10 गिलासों में दूध रखा हो और 4 गिलासों में गन्दी मक्खी पड़ गयी हो तो उस दूध को फैंकना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार जिस पार्टी में भ्रष्ट लोग आ जाएं तो संगठन को उन्हें भी फैंकना चाहिए। फिर मतदाता स्वस्थ ,चित, मन से अपना मतदान कर सकता है।
जिस प्रकार किसी भी धर्म मे किसी बुराई का कोई स्थान नहीं होता है, उसी प्रकार किसी भी पार्टी में कोई बुरी बात नहीं होती है। अब मतदाता को केवल यह बताना है कि किस पार्टी ने अपना सही प्रत्याशी जनता के सामने रखा है,ओर सबसे अच्छा कौन से पार्टी का प्रत्याशी है। कहने का अर्थ यह है कि हमारे राजनैतिक दल खराब नही हैं, परन्तु जो पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई हो उसको कभी भी वोट न दें तभी प्रजातन्त्र की विजय होगी। आज हर पार्टी में गुटबाजी हो रही है। कुर्सी के लिए होड़ लगी है, कृपया अपनी आत्मा की, विवेक की आवाज पहचान कर अपना अमूल्य वोट कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, निष्पक्ष, सत्यनिष्ठ प्रत्याशी को ही दे।