राजेश भट्ट- रुद्रप्रयाग
लस्तर बायां नहर न बनने से किसान आज भी आसमान को ताक रहें हैं।
रुद्रप्रयाग। जखोली विकासखंड के सिलगढ़ व बड़मा पट्टी के 24 गांवों के लिए वर्ष 2006-07 में स्वीकृत लस्तर वाया सिंचाई नहर का लगभग 14 वर्ष बाद भी निर्माण नहीं होने से सिलगढ़ ओर बड़मा पट्टी के साथ साथ बांगर पट्टी के पूलन, चोपड़ा व सिरवाड़ी के काश्तकारों में मायूसी है।
लस्तर बायां सिंचाई नहर से सिलगढ़ व बड़मा के चोपड़ा, कुरछोला, नागधारकोट, पूर्वियाणा, तैला, जखनोली, टाट पाली, जैली, कंडाली, कुमडी, मुसाढुंग, जखनोली, जखोली, सिद्धसौड बडमा, थाती, मुन्ना देवल, चाका फलाटी सहित 50 गांवों को लाभ मिलना था। योजना के निर्माण के लिए शासन से 18 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे। योजना की निर्माण के लिए 2 करोड़, 8 लाख में खरीदी गई सामग्री गैंठाणा, धारकुडी आदि जगहों पर जंक से नष्ट हो रहे हैं।
मीडिया में इस नहर निर्माण में हुई धांधली को लेकर उठाये गए मुद्दे पर तत्कालीन डीएम मंगेश घिल्डियाल ने स्वीकृत नहर की जानकारी के लिए एडीएम की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की थी। समिति में एसडीएम जखोली, ईई लघु सिंचाई व ग्रामीण निर्माण विभाग को शामिल किया गया था।
लस्तर बांयां सिंचाई नहर पर विभाग द्वारा आनन फानन में वर्ष 2012 में करोड़ो रूपये के पाईप खरीदे गए। लेकिन 9 वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी सड़क किनारे पाईप जंग खा रहे हैं।
उक्त सिचाई नहर के सम्बंध में विधायक श्री भरत सिंह चौधरी जी द्वारा विधान सभा मे प्रश्न लगाया गया था ।और कई बार उक्त सिंचाई नहर निर्माण में हुई करोड़ों की अनियमितताओं की खबर मीडिया में सुर्खियां भी बनी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लस्तर सिचाई नहर का संज्ञान लेते हुए सचिव स्तरीय जांच के निर्देश दिए गए थे
इस पर मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद सिंचाई विभाग के संयुक्त सचिव जे०एल० शर्मा की अध्यक्षता में 3 सदस्य जांच कमेटी बनाई गई थी।
वर्षों से जंग खा रहे हैं करोड़ों के पाइप
मयाली-बधाणी ताल मोटर मार्ग पर गैंठाणा, कोट गांव की सड़कों पर जगह जगह पड़े यह पाइप पिछले 9 सालों से जंग खा रहे हैं। करोड़ों की लागत से खरीदे गए यह सैकड़ों पाईप सड़क किनारे जगह-जगह सड़ रहे हैं। 18 किलोमीटर लंबी इस नहर निर्माण के लिए मार्च 2012 में लगभग दस करोड़ रूपए स्वीकृत हुए थे। इनमें से लगभग 2 करोड़ 26 लाख रुपए की लागत से सिंचाई पाइप खरीदे गए थे।स्थानीय काश्तकारों को सिंचाई नहर बनने से लाभ-
लस्तर बायां नहर बनने से लगभग 24 गांवों के काश्तकारों को लाभ मिलता है लस्तर बायां क्षेत्र आलू उत्पादन व गोभी तथा अन्य सब्जी उत्पादन के लिए भौगोलिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। एक तरफ पहाड़ पलायन का दंश झेल रहा है उसका कारण कहीं न कहीं सरकारों द्वारा इस तरह की योजनाओं के सपने दिखाकर उन्हें पूरा नही करना भी रहा है।
रोजगार सृजन के क्षेत्र में यदि पहाड़ों की स्थिति देखें तो खेती, पशुपालन ओर पर्यटन ही स्रोत हैं। इनमें मुख्य रूप से पहाड़ को नकद फसल उत्पादन और पशुपालन समृद्ध बना सकता है जैसे कि हिमाचल प्रदेश ने अपनी योजनाओं को किसानों को ध्यान में रखकर बनाया और आज खेती किसानी से आय अर्जन करने की तकनीकी हिमाचल के किसान जानता है क्योंकि वहां की सरकारों ने किसानों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाई।
क्यों नही बन पा रही है लस्तर बायां नहर- सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग ओर उत्तराखंड सरकार द्वारा 2006-07 से वर्तमान जनवरी 2022 तक इस मुद्दे को कभी भी गम्भीरता से नही लिया है। जिसके कारण कई हजार हेक्टेयर भूमि बिना पानी के आसमान के भरोसे पर है।
देखिए राजेश भट्ट की विशेष रिपोर्ट-