जखोली ब्यूरो
इलाज के नाम पर गर्भवती महिलाओं की जान के साथ खिलवाड़ कर रहा है स्वास्थ्य विभाग रुद्रप्रयाग।
मासूम जिन्दगी से खेल गया स्वास्थ्य विभाग।
सरकार पहाड़ों मे स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने का जितना भी दावा क्यों न करे, लेकिन सरकार के ये दावे हवा हवाई ही साबित हो रहे है। जब स्वास्थ्य सेवाएं ही दम तोड़ रही है तो फिर अस्पताल मे इलाज कराने वाला बिमारी व्यक्ति कैसे नही दम तोड़ेगा।
रुद्रप्रयाग जनपद की स्वास्थ्य सेवाएं जो हमेशा से ही विवादों में रही हैं और विशेषकर प्रसूति महिलाओं को लेकर इनका रवैया अपने पिंड छुड़ाने तक सीमित रहता है। हम बात कर रहे है रुद्रप्रयाग जनपद के जखोली ब्लॉक मुख्यालय में स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की।
उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह अपना ही स्वास्थ्य उत्तराखण्ड को बनने से लेकर आज तक सही नही कर पाई हैं।
रुद्रप्रयाग जनपद की स्वास्थ्य सेवाएं जो हमेशा से ही विवादों में रही हैं और विशेषकर प्रसूति महिलाओं को लेकर इनका रवैया अपने पिंड छुड़ाने तक सीमित रहता है।
रुद्रप्रयाग जनपद के जखोली ब्लॉक मुख्यालय में स्वास्थ्य विभाग रूद्रप्रयाग द्वारा संचालित सीएचसी सेंटर के डॉक्टरों द्वारा की गई लापरवाही 23 वर्षीय विनीता की मृत्यु का कारण बना।
दिनांक 30 दिसम्बर को विनीता को इस हॉस्पिटल में परिजनों द्वारा भर्ती किया गया था। वैसे तो सी एच सी जखोली मे हमेशा ही एक न एक समस्या का अम्बार लगा रहता है, जिस कारण से यह अस्पताल रेफर सेंटर बन गया है।
विदित हो कि ग्राम पंचायत मयाली की रहने वाली गर्भवती महिला श्रीमति विनीता देबी को प्रसव के लिए 30 दिसंबर को सीएचसी जखोली मे उनके परिजनो के द्वारा भर्ती कराया गया, लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही के चलते 23 वर्षीय विनीता ओर उनके नवजात शिशु को रेफर किया गया। मृतका की एक साल पूर्व मयाली निवासी अमित काला के साथ शादी हुई थी कि जिसकी आज असमय मृत्यु हो गयी।
अब सवाल इस बात का भी है जब चिकित्सालय मे इमरजेंसी प्रसवकालीन महिलाओं के लिए जब कोई व्यवस्था ही नही है तो फिर महिला को जखोली प्रभारी के द्वारा क्यों समय रहते रेफर नही किया गया।
अस्पताल मे सुविधा के नाम पर लाखो रुपये की लागत से अल्ट्रासाउंड मशीन भी लगाई गयी है ताकि मशीन द्वारा समय समय पर गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच हो सके लेकिन यह मशीन भी सालो से धूल फांक रही है। इस अल्ट्रासाउंड मशीन के खराब होने की आवाज़ जखोली की क्षेत्रपंचायत की बैठक मे उठी थी तथा जनप्रतिनिधियों ने अस्पताल मे लापरवाही बरतने के एवज मे प्रभारी की स्थानांतरण किये जाने की माँग भी सदन मे उठाईं थी।
निरंतर ऐसी घटनाएं होने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग और उत्तराखंड सरकार क्या सोच के आंख मूंद के बैठे हैं कोई जबाब नहीं है। एक तरफ पहाड़ से पलायन रुके के लिए पलायन आयोग जैसे शिगूफे छोड़े जाते हैं दूसरी तरफ पहाड़ की महिलाएं और मरीज स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में अकाल मृत्यु से ग्रसित हो रहें हैं।
सरकार के काम क्या हैं राजनीति करना या सड़क स्वास्थ्य और भोजन की व्यवस्था करना। मन व्यथित हो जाता है ऐसी घटनाओं से कि हम ये खबर लिखकर करेंगे भी क्या जब सिस्टम ने आंख बंद कर रखी हैं।