अनोखी परम्परा - रक्षाबंधन को ही खुलते वंशीनारायण मंदिर के कपाट।
चमोली। समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे उत्तराखंड अपने सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। अनेकों मंदिर जिनका वर्णन वेद पुराणों में है व अपनी प्राकृतिक सुंदरता को लिए प्रसिद्ध होने के चलते श्रद्धालुओं का इन स्थानों के प्रति श्रद्धा व समर्पण का भाव देखते बनता है। कई स्थान ऐसे हैं जिनकी लोक परम्परा आज भी अविरल चल रही है ऐसे ही जोशीमठ ब्लाक की उर्गम घाटी में स्थित भगवान वंशीनारायण मंदिर के कपाट सिर्फ रक्षाबंधन पर्व पर एक दिन के लिए ही खुलते हैं। विभिन्न इलाकों से आई बहिने मंदिर में पहुंच कर भगवान विष्णु की चतुभरुज मूर्ति की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। भगवान वंशीनारायण को रक्षा सूत्र बांधकर सुख समृद्ध की मंगलकामना भगवान से करती हैं ।
गढ़वाल के इतिहास में पांडवों का मंदिर निर्माण करना और पांडवों का गढ़वाल की संस्कृति का अभिन्न अंग होना पांडवों के द्वारा बनाये गए अनेकोनेक मंदिरों से है। ऐसे ही उर्गम गांव से करीब 5 किमी की दूरी पर स्थित प्राचीन वंशीनारायण मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था। परम्परानुसार रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के ग्रामीण भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं। मां नंदा के पुजारी हरीश रावत द्वारा पूजन कार्य सम्पन्न कराया जायेगा। अपने इष्ट के दर्शनों लिए भक्तों का मंदिर परिसर में पहुंचने के लिए रक्षाबंधन के दिन का इन्तजार करना अपनी परम्परा को समृद्धता की और ले जाने का दिन है।
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर भगवान वंशीनारायण को भक्तों द्वारा हलवा, दूध, मक्खन के साथ स्थानीय उत्पादों का भोग लगाया जाता है। परम्परा के अनुसार रक्षाबंधन पर वंशीनारायण मंदिर में भगवान को बहिनें रक्षासूत्र बांधने पहुंचती हैं। भगवान को रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहिनें वापस लौट कर भाइयों को राखी बांधती हैं। यह समृद्ध परंपरा सदियों चली आ रही है जो की अनवरत जारी है।
लोकमान्यता के अनुसार देवताओं के द्वारा आग्रह करने पर विष्णु भगवान ने वामन रूप में आकर दानबीर राजा बलि का घमंड चूर किया था। तब राजा बलि ने पाताल में जाकर भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रफुल्लित होकर विष्णु ने बलि को वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उन्हें द्वारपाल बनाने का आग्रह किया। इसे भगवान विष्णु ने स्वीकार कर दिया और वे राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए।
लोकमान्यता के अनुसार देवताओं के द्वारा आग्रह करने पर विष्णु भगवान ने वामन रूप में आकर दानबीर राजा बलि का घमंड चूर किया था। राजा बलि ने पाताल में जाकर भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बलि को वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उन्हें अपने द्वार का द्वारपाल बनाने का वरदान माँगा। भगवान विष्णु ने स्वीकार कर दिया और वे राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए।
बलि द्वारा भगवान विष्णु अपना द्वारपाल बनाने बाद जब लम्बे समय तक माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को कहीं नहीं पाया तो उन्होने महर्षि नारद के से सलाह ली और नारद जी के द्वारा बलि को रक्षा सूत्र बांधने के सुझाव पर रक्षाबंधन के दिन राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध कर भगवान विष्णु को मुक्त करने का आग्रह किया। रक्षासूत्र बांधने के दिन भगवान को माँ लक्ष्मी को देने के बाद इसी स्थान पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी इसी स्थान पर मिले थे। तब से रक्षाबंधन के दिन हर साल रक्षाबंधन पर ही भगवान वंशीनारायण के कपाट एक दिन के लिए ही खुलते हैं। इससे बहिने भगवान विष्णु को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।




