देवीधुरा में फलों से खेली गई बग्वाल,

देवीधुरा बग्वाल मेले का इतिहास और मान्यता,
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 देवीधुरा  में फलों से खेली गई बग्वाल, सीएम धामी बने साक्षी, जानिए देवीधुरा बग्वाल मेले का इतिहास और मान्यता

उत्तराखड की समृद्ध लोक परम्परा अपनी विरासत को बचाये हुए है जिसका श्रेय यहां के मूल निवासियों को जाता हैं जिहोने  संस्कृति  की जड़ों को अविरल सिंचित करके लोक  संस्कृति  विरासत को आगे बढ़ाकर नई पीढ़ियों तक पहुंचाया है। चाहे वह वंशीनारायण मंदिर का रक्षाबंधन के दिन सालभर में एक दिन खुलना हो या रक्षा बंधन के दिन देवीधुरा बग्वाल मेले आयोजन हो।

चंपावत के देवीधुरा के प्रसिद्ध मां वाराही मंदिर में रक्षाबंधन पर बग्वाल खेलने की परंपरा है।  प्राचीन समय में  नर बलि देने की प्रथा रही है जो समय के साथ बदलकर पत्थर युद्ध में तब्दील हो गई थी ,वर्ष 2013 में न्यायालय के आदेश के बाद पत्थरों की जगह फूल और फलों से बग्वाल खेली जाने लगी। वाराही मंदिर परिसर  बग्वाल खेलने वाले बग्वालीवीरों का मानना है कि वो आसमान में फलों को फेंकते हैं, लेकिन वो पत्थरों में तब्दील हो जाते हैं. इस बग्वाल में एक व्यक्ति के शरीर के बराबर का खून बहाया जाता है। यह परम्परा अब समय के साथ बदली है जो की मानव समाज के लिए कल्याणकारी है और लोग दूर दूर से मंदिर परिसर  बग्वाल मेले को देखेने  के लिए आते हैं।





 

देवीधुरा में नर बलि देने की थी प्रथा-   चंपावत जनपद में स्थित देवीधुरा का ऐतिहासिक बग्वाल मेला आषाढ़ी कौथिक के नाम से भी जाना जाता है।  रक्षाबंधन के पावन पर्व पर यहां बग्वाल खेली जाती है।  लोकमान्यता के अनुसार प्राचीनकाल  काल में चार खामों के लोगों की ओर से अपने आराध्य मां वाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। लोक जनश्रुति के अनुसार एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार में नर बलि के लिए बारी थी परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। वृद्ध  महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मां वाराही की स्तुति की और मां वाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और चार खामों के बीच बग्वाल खेलने को कहा। माँ वाराही के दर्शन और बग्वाल खेलने के आदेश के बाद तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई।  मान्यता के अनुसार कहा  जाता है कि एक इंसान के शरीर में मौजूद खून के बराबर रक्त बहने तक खामों के बीचे पत्थरों से युद्ध यानी बग्वाल खेली जाती है। पुजारी के बग्वाल को रोकने के आदेश तक युद्ध जारी रहता है। बग्वालवीरों में  मान्यता है कि इस खेल में कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं होता है। 

प्रति वर्ष रक्षाबंधन पर देवीधुरा स्थित मां वाराही देवी मंदिर परिसर में बग्वाल मेले का आयोजन होता है।  इस वर्ष आज रक्षाबंधन के पर्व पर आषाढ़ी कौथिक के 50 हजार से ज्यादा लोग बग्वाल मेले का गवाह बने। चारों खामों (बिरादरी) के बग्वालवीर रणबांकुरों ने 7 मिनट तक फूल, फल और पत्थरों से युद्ध किया।  इस अवसर पर मुख्यमंत्री धामी मां वाराही धाम देवीधुरा पहुंचे और मंदिर में पूजा अर्चना कर  क्षेत्र की खुशहाली की कामना माँ वाराही से की।   

साल 2022 में प्रसिद्ध देवीधुरा मां वाराही बग्वाल मेले को राजकीय मेला घोषित किया गया है।  पाटी ब्लॉक के देवीधुरा स्थति मां वाराही धाम (बाराही) के खोलीखांड डुवाचौड़ मैदान में सुबह के समय प्रधान पुजारी ने पूजा अर्चना करने के पश्चात  12 बजकर 40 से एक-एक कर सभी चारों खामों और 7 थोक के बग्वालियों का मंदिर परिसर आगमन प्रारम्भ हुआ।सर्वप्रथम  वालिक खाम के सफेद पगड़ी पहने बग्वालियों ने मंदिर में प्रवेश किया।  फिर 1 बजकर 8 मिनट में चम्याल खाम के गुलाबी पगड़ी पहने बग्वालवीरों ने मंदिर में प्रवेश किया।  1 बजकर 36 मिनट पर गहड़वाल बिरादरी के बग्वालवीरों  ने मंदिर में प्रवेश किया।  आखिर में लमगड़िया खाम  पीली पगड़ी पहनकर मंदिर में प्रवेश किया। 

सभी बिरादरियों के मंदिर परिसर में प्रवेश के बाद प्रधान पुजारी ने मंदिर से शंखनाद करके बग्वालवीरों को बग्वाल खेलने की अनुमति दी।  यह बग्वाल  2 बजकर 14 मिनट पर  शुरू हुई और  बग्वाल शुरू होते ही मां वाराही के जयकारों से पूरा खोलीखाण दुवाचौड़ मैदान गुंजायमान हो गया। माँ वाराही के जयकारों के बीच चल रहे बग्वाल की अविधि 11 मिनट रही।  पीठाचार्य पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी ने कहा कि यह मेला बग्वाल देखने वालों के लिए भी फलदायी है।  इस बार करीब 10 क्विंटल फलों से युद्ध खेला गया।  बग्वाल युद्ध में 212 रणबांकुरे मामूली रूप से घायल हुए हैं  घायलों का इलाज कर घर भेज दिया गया है। मेले का संचालन पीठाचार्य कीर्तिबल्लभ जोशी और चेतन भैय्या ने किया।

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह देवीधुरा का मेला व माँ वाराही मंदिर  आध्यात्मिक रूप से जितना समृद्ध है, प्राकृतिक रूप से भी उतना ही ज्यादा मनोरम है।  इस अलौकिक भूमि का न केवल ऐतिहासिक महत्व रहा है, बल्कि इस क्षेत्र का पौराणिक महत्व भी किसी से छिपा नहीं है।  संस्कृति की महानता के विषय में आम लोगों को जागृत करने का काम हमारे ऐतिहासिक मेले करते हैं।  बगवाल का यह ऐतिहासिक मेला भी इसी का एक बेहतर उदाहरण है। लोकसंस्कृति की समृद्ध विरासतों को संजोने कार्य यह मेले करतें हैं। 



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