बन्दर के हमले से छोटी बच्ची घायल।
दिन में बन्दर रात को बाघ ओर सुअरों के आतंक ने यहां लोगों को भयाक्रांत कर रखा है।
जखोली विकासखण्ड में कोठियाड़ा गाव में घर के आंगन में बन्दर ने झपट्टा मारकर छोटी बच्ची को नाखून से किया घायल।
विकासखण्ड जखोली में मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं रुकने का नाम नही ले रही हैं अभी एक सप्ताह के अंदर मानव वन्य जीव संघर्ष की यह तीसरी घटना जानकारी में आई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कुमारी मनीषा उम्र लगभग 6 वर्ष अपने घर पर खेल रही थी कि अचानक बन्दर ने झपट्टा मारकर कर बालिका को घायल कर दिया जिसे परिजनों द्वारा तत्काल जखोली अस्पताल पहुंचाया गया और अस्पताल में प्राथमिक उपचार दिलाया गया।
बन्दरों का आतंक कितना बड़ा है यह अंदाज हर जुबान पर दिन में बन्दर ओर रात को बाघ ओर सुवर के कारण भयाक्रांत रहना मजबूरी है कि बात है जिसके लिए कोन दोषी है और कौन नही यह सिर्फ चर्चा तक सीमित है न कोई कार्यवाही होती जिसके कारण आज जंगल मे रहने वाले जानवर बस्तियों के नजदीक आ रहे हैं।
इससे पूर्व पेपर देने जा रहा बालक गुलदार के हमले से घायल हुआ और उसके 3 दिन बाद उसी क्षेत्र में घास लेने गयी महिला को गुलदार ने हमला कर घायल किया। लगातार वन्य जीवों की आबादी की ओर आने की घटनाओं से ग्रामीण हर समय स्वयं को सुरक्षित महसूस नही कर रहे हैं।
बंदरों के कारण पहाड़ की खेती बंजर होती गयी और आज आलम यह है कि जो पहाड़ खेती के लिए जाने जाते थे वह आज लैंटाना ओर अन्य झाड़ियों से भरे पड़े हैं लोग खेती से विमुख सुवर ओर बन्दरों के कारण हुए यह बात सबको पता होने के बाद भी सरकारी प्रयास इस ओर नही किये गए और न कोई इनपर ध्यान देने को तैयार है इसका नतीजा यह निकला की सरकार को पलायन आयोग बनाना पड़ा जो खुद ही पलायन कर गया वह पहाड़ के पलायन को क्या रोकेगा।
मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए ठोस पहल करनी पड़ेगी जिसमें सरकारी योजनाकारों को सबसे पहले पहाड़ से पलायन न हो के लिए जंगली जानवरों को जंगल तक कैसे रखा जाए के लिए कार्य करना पड़ेगा। पूर्व के समय की अपेक्षा अब जंगलों पर आश्रितों की संख्या नगण्य हो गयी है इस तरह से तो जंगली जानवरों को जंगल मे रहने की आजादी थी पर इनके स्वभाव में आ रहा परिवर्तन कहीं न कहीं पहाड़ को जनशून्य करने का सबसे बड़ा कारण होगा।