प्रभागीय परियोजना प्रबंधन की नाकामी ओर नक्कारेपन के चलते रिप परियोजना से जुड़ने को तैयार नही अधिकतर शेयरधारक।
सहकारिता अध्यक्ष के साथ ऐसे बर्ताव की इनके रोटी के टुकड़ों पर पल रहें हो जैसे।
हिमालय की आवाज न्यूज पोर्टल ने पहले भी खबर चलाई थी आखिर कब खुलेंगे रोजगार सृजन के नाम पर बने भवनों के ताले।
संकल्प से सिद्धि नाम के बड़े बड़े होर्डिंग पोस्टर लगाकर दिन में ही सपने दिखा गयी आईएलएसपी परियोजना।
रोडमेप ओर वैल्युचेन के नाम पर नया शिगूफा लोगों के बीच मे छोड़कर खुद अपना अस्तित्व को बचाने में नाकामयाबी तक के सफर को पूरा करने के बाद 5 वर्ष पहले स्थापित हिलासँ ब्रांड को विश्वस्तर तक कि पहचान दिलाने की बात में कितना दम होगा इसका अंदाज इस परियोजना के 2004 से अब तक सफर से लगाया जा सकता है। विभिन्न नामों से यह परियोजना संचालित होती रही है।
अब REAP के नाम से संचालित परियोजना में एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना के नाम से 2015 से 2020 तक चली परियोजना में जो उत्पादक समूह या अति उत्पादक समूह गावँ स्तर पर बनाये गए थे और आजीविका स्वायत्त सहकारिताओं का गठन क्लस्टर स्तर पर किया गया था उनके साथ नए सिरे से कार्य करने के उद्देश्य से अनुबंध किये जा रहे हैं जिसके लिए कई समूह परियोजना की कार्यप्रणाली से सहमत न होकर जुड़ नही रहैं हैं जबकि परियोजना के विड्रॉल फेस में परियोजना कार्य क्षेत्र को नई बुलन्दी छूने के फोटोग्राफ्स ओर वीडियो के साथ तमाम तिकड़मों का सहारा लिया गया था।
अब यह परियोजना अपने नए नाम REAP (Rural Enterprise Acceleration Project) के नाम से लॉन्च की गई है, 2004 से लगातार वर्तमान 2023 तक उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास समिति के माध्यम से यह प्रोग्राम विभिन्न नामों से चलाया गया जिसका क्या असर हुआ और इस परियोजना पर व्यय कितना हुआ है यह देखकर कोई भी हकीकत बता सकता है।
परियोजना का अपना स्वयं का उद्देश्य बहुत सार्थक है पर प्रभागीय परियोजना प्रबंधन इकाई और प्रदेश स्तर पर परियोजना को संचालित करने के लिए के लिए अच्छा खासा मानव संसाधन जोड़ा गया है और परियोजना को कागजी घोडा और तीन का तेरह कैसे बनाना है की जुगत में जुड़े रहने की मजबूरी है या आदतन है इसकी चर्चा अगले किसी अंक में विस्तृत रूप से रिपोर्ट पाठकों को देखने को मिलेगी।
केनोपी लगाकर 30-40 किलो मंडुवा, आटा, झंगोरा कुटा हुआ, दालें और शर्बत की बोतलों को रखकर फ़ोटो खींचकर कर्तव्य की इतिश्री करना जबतक लक्ष्य रहेगा वाहवाही और अपनी पीठ थपथपाने से स्वयं को पालनहार समझने की समझ जिस अविधि तक बनी रहेगी तबतक यही होता रहेगा।
2015 -16 में बनी सहकारिताओं में शेयरधन के रूप में प्रत्येक शेयरधारक ने अपना लाभार्थी अंश जमा किया था जो की वित्त वर्ष 2022 - 2023 में कितना प्रतिशत बढ़ा है या घटा है इसकी जानकारी अभीतक शेयरधारकों को नहीं है। क्या 5 -7 वर्ष पूर्व की अविधि में बनी सहकारिताओं का मुनाफा बढ़ना चाहिए था या नही? क्यों नहीं बढ़ा इसका कारण क्या था। क्यों सहकारिताओं का सीसीएल बैंक खाता खुलवाकर सहकारिताओं को कर्ज के जाल में फंसाया गया। बैंक की क़िस्त समय पर न जाने के कारण बंधक के रूप में रखी गयी एफडीआर को बैंक द्वारा कर्ज का समायोजन करने के लिए नियमानुसार रखा गया वो किसका धन था।
परियोजना में कार्यरत डीपीएमयू और पीएमयू कर्मियों द्वारा वेल्यू चैन और रोजगार सृजन के नाम पर ऐसे खरीद की गयी जिस्का जबाब न सहकारिता अध्यक्ष के पास है और न डीएमयू के अधिकृत अधिकारी के पास।
परियोजना का मूल्यांकन यदि करना हो तो बिना किसी पूर्व सूचना के किसी भी गावं में जाकर हकीकत पता चल जायेगी। आज स्थिति ये है की जनपद रुद्रप्रयाग में शेयरधारकों का शेयरधन किसके पास है मिलेगा या नहीं स्थिति असमंजस वाली है।
कुम्भकर्णी नींद थी जानबूझकर अपना कर्तव्य निर्वहन नहीं किया गया अब जाकर तत्कालीन सहकारिताओं में कार्यरत कर्मियों को वसूली के नोटिस थमाए जा रहें हैं। जब सबको पता था की परियोजना की अविधि का समापन समय है तो उस समय यह कार्य क्यों नहीं किया गया।
कई सवाल उठ रहें हैं जिनको स्पष्ट करना आवश्यक है। शेष अगले अंक में