मठियाणा खाल मन्दिर में जागृत रूप में विराजमान है माँ मठियाणा देवी

माँ मठियाना देवी मंदिर मठियाणा खाल, माँ को पहले शहजा के नाम से जाना जाता था ओर आज भी सिरवाड़ी गाँव मे माँ की पूजा सहजाके रूप में की जाती है,
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  मठियाणाखाल मन्दिर में जागृत रूप में विराजमान है माँ मठियाणा देवी।

    माँ मठियाणा देवी मंदिर में वर्षभर श्रधालुओं आते हैं मन्न्नतें पूरी होने और मन्नत मांगने के लिए। 

    माँ के मंदिर में धियाणियों की पुकार लगती है सबसे पहले।

लोक कथाओं ओर लोकगीतों में माँ मठियाणा देवी की उत्त्पति ओर वृतांत मिलता है जो कि स्पष्ट और कालांतर में भी लोक कल्याण के लिए जीवंत कथा लगती है।

लोकगीतों ओर कथाओं के अनुसार माँ मठियाणा देवी का मायका विकासखण्ड जखोली के सिरवाड़ी बांगर था पहले इनका नाम सहजा था और इनका विवाह डोला मारछा नाम के राजकुमार के साथ हुआ था।

    जिन्हें  इनकी सौतेली मां ने खीर में जहर मिलाकर दिया और डोला मारछा की मृत्यु हो गयी ओर उनका शव सहजा की सौतेली मां ने जंगल मे एक घर के कमरे में डाल दिया। पति को घर मे न पाकर सहजा अपने पति की खोज करने लगी तब सहजा की भतीजी ने अपने माँ के द्वारा किये गए घटनाक्रम को बताया कि कैसे मामा को खीर में विष देकर मारा।

    यह सब सुनकर सहजा ने अपने पति को देह को खोजकर ओर माता अकेले ही दोपहर बाद सूर्यप्रयाग के चल दी कोठियाडा गाँव पहुँचते माँ को रात हो गयी ओर अपने पति की देह को रोते हुए चकोड़ीधार के मैदान में माँ ने जमीन पर रखा और बैठ गयी।

     कहा जाता है उस समय एक महात्मा आये माँ को ढांढस बंधाया ओर एक किनारे पर अपनी धुनि रमा कर बैठ गए वह महात्मा कोई और नही भगवान शंकर थे।

      प्रातः काल मे माँ ने अपने पति की देह को लेकर सूर्यप्रयाग के लिए प्रस्थान किया ओर दो तीन जगह विश्राम किया उसके बाद माँ ने सूर्यप्रयाग घाट पर चिता को  तैयार कर अपने पति के साथ चिता पर बैठकर सती होने लगी तो उसी समय सूर्यगिरी महाराज आये और माँ को चिता से निकालकर बाहर किया मां का शरीर अधजला था तो माँ ने काली रूप में अवतरित हुई और भरदार पट्टी के खाल में अपना स्थान बना लिया।

      फिर मां ने जहां जहां अपने पति को लाते समय विश्राम किया था उन स्थानों पर दुबारा जाकर भूमि पूजा की थी उन स्थानों पर भी मां मठियाणा के मंदिर बने हैं जो कि अपार श्रद्धा के केंद्र हैं।

    मां मठियाणा देवी को समस्त भरदार पट्टी के निवासी अपनी धियाँण (मायके की बेटी) समझते हैं। जब सिरवाड़ी बांगर में माता सहजा की पूजा होती है तो भरदार पट्टी से गावँ के लोग  अपनी धियाँण सहजा से मिलने सिरवाड़ी गावँ जाते हैं।

    परम्परा इतिहास के साथ वर्तमान की समीक्षा करके जोड़ती है और अगाध विश्वास परम्परा में हो तो वह परम्परा इतिहास न बनकर वर्तमान और भविष्य बनती है।

    पहाड़ों में बेटियों को कितना ऊंचा दर्जा दिया जाता है यह माँ नन्दा 6 और मठियाणा देवी के वृत्तांतों से समझा जा सकता है पहाड़ का जीवन पहाड़ जैसे है पर अपनी लोकमान्यताओं के प्रति पहाड़ के लोग आज भी समर्पित भाव से स्वयं को उसका अंग मानते हैं और परंपराओं को जीवंत रखा ।


सूचना स्रोत- श्री परशुराम भट्ट

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