वन विभाग रुद्रप्रयाग के बाबुओं की त्वरित गति से कार्य करने की प्रणाली की समीक्षा होना जरूरी।
क्या वन विभाग में नोकरी करना गुनाह है।
ऐसे ही शब्द एक सेवा निवृत्त उपराजिक के द्वारा कहे गए हैं कि डेढ़ साल पहले में वन विभाग में उपराजिक पद से सेवा निवृत्त हुआ था पर आज तक मेरी पेंशन बाबुओं के कारण ऐसे मकड़जाल बन कर रह गयी कि अब कोई शब्द नहीं हैं।
क्या वन विभाग के उच्चाधिकारी इस बात की समीक्षा नही करते हैं कि विभाग के कितने लोग सेवानिवृत हो गए हैं और जो पेंशन के हकदार हैं उनके समस्त देयक के साथ साथ पेंशन शुरू हुई या नहीं यदि ऐसे होता तो समय डेढ़ साल नही डेढ़ दिन के अंदर समस्त कार्यवाही हो गयी होती।
ऐसे ही एक मामला है श्री उम्मेद लाल का जिन्होंने वन विभाग को 3 दशक से भी ज्यादा समय तक अपनी सेवाएं दी और सेवानिवृति के बाद आज अपनी पेंशन के लिए कभी वन विभाग रुद्रप्रयाग तो कभी कोषागार में चक्कर काट रहे।
ऐसे क्यों हुआ और कब तक ये सब चलेगा ऐसी समस्या सिर्फ वनविभाग में ही नही है अन्य विभागों में भी है इस पर जिला प्रशासन रुद्रप्रयाग तत्काल संज्ञान लें और इस प्रकरण को डेढ़ साल तक लटकाने के लिए सम्बंधित को कारण बताओ नोटिस जारी करें कि पेंशन जो नोकरी के बाद भरण पोषण का मुख्य स्रोत है उसे लाभार्थी को क्यों नही दिया गया।
सभी विभागध्यक्षों से अपेक्षा है कि अपने अधिनस्थ सेवा निवृत्त कार्मिकों से स्वयं सम्पर्क करके उनकी समस्याओं को सुने ओर उनका निराकरण निश्चित समय मे करने का प्रयास करें अन्यथा बाबूगिरी के कारण डेढ़ साल तक बाट जोह रहे उम्मेद लाल की उम्मीद की तरह अन्य की उम्मीदें न टूटे।


