क्यों उत्तराखंड के जनमानस की भावनाओं पर खरी नहीं उतर पायी यूकेडी।
पर्वतीय राज्य की अवधारणा उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने हेतु कई आन्दोलन हुए। उत्तराखंड अलग राज्य बने के आंदोलन में महिलाओं की भूमिका अहम थी। उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्ज देने की मांग भारत की आजादी से पहले भी उठती रही थी। कई वर्षों के संघर्ष और कई बलिदानों के बाद 9 नवंबर सन 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला।
24-25 जुलाई, 1979 को मंसूरी में एक लक्ष्य राज्य की समस्याओं का निराकरण करते हुए 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य की स्थापना करने के उद्देश्य से पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का गठन किया गया। इसके प्रथम अध्यक्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. देवीदत्त पंत बनाए गये।
उत्तराखंड को प्रदेश का दर्जा दिलवाने के लिए अनेकों आंदोलन हुए जिसमें की पहाड़ की पीड़ा न समझने वाली मुलायम सरकार के द्वारा किये गए नृशंष जघन्य अपराध को कोई भी उत्तराखंडी नहीं भूल पायेगा।
इस आंदोलन में उत्तराखंड क्रांति दल की भी बहुत बड़ी भूमिका रही जिसके कारण उत्तराखंड क्रांतिदल एक राजनैतिक दल बना और उत्तराखंड की राजनीति में चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुआ। लोगों की जुबान पर उत्तराखंड क्रांति दल था पर क्या कारण रहे कि उत्तराखंड क्रांति दल वह छाप लोगों के मनोमस्तिष्क पर नहीं बना पाया जिसका वह हकदार था।
सन 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तराखंड क्रांति दल की राज्यस्तरीय दल की मान्यता छिन चुकी थी। पूर्व में राज्यस्तरीय दल होने के चलते चुनाव आयोग ने तीन वर्षों के लिए उत्तराखंड क्रांति दल को कुर्सी का निशान दिया था। उसके बाद उत्तराखंड क्रांति दल 2019 में लोकसभा व 2017 तथा 2022 में विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी है लेकिन चुनाव आयोग की शर्तों को पूरा न कारण चुनाव निशान कुर्सी को रिजर्व निशान के रूप में डाला गया है। इस विधानसभा चुनाव में यूकेडी को महज 01 फीसदी मत मिले हैं जिस कारण यूकेडी से चुनाव निशान कुर्सी छिन गयी।