परशुराम भट्ट/ रुद्रप्रयाग
लोकतंत्र में चुनाव का अपना महत्व है। समृद्ध राष्ट्र की अवधारणा वहां के लोकतंत्र की स्थिति पर निर्भर करती है। चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। इन पांचों राज्यों में 690 विधानसभाओं में चुनाव होने हैं।
चुनाव आयोग (Election Commission) ने उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इन पांचों राज्यों में 690 सीटों पर चुनाव होने हैं. 18.34 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे। इन पांच राज्यों में 7 फेज़ में चुनाव किए जाएंगे । पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में एक ही फेज़ में चुनाव होंगे।
उत्तराखंड में चुनाव-
उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को मतदान किया जाना है जिसके लिए सभी राष्ट्रीय दल, क्षेत्रीय दल और निर्दलीय प्रत्याशी अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करने को तैयार हैं। मतदान की तिथि जैसे जैसे नजदीक आ रही हैं वैसे ही दल बदल और अपनी विचारधारा के हिसाब से मतदाताओं को रिझाने की कोशिस की जा रही हैं।
लोकतंत्र की खूबसूरती यह है कि हर मतदाता अपने हिसाब से अपनी अवधारणा को बनाता है और स्वतंत्र होकर मतदान करता है, जिसका आभाष उसे मतदान के समय भारत के लोकतंत्र में खुद के महत्व का आभास होता है, कि मेरा मत सही प्रत्याशी को जाए जिससे कि मेरा देश प्रगति के पथ चिरन्तर रूप से चलता रहे और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करने में मेरा योगदान भी है, यह विचार हर मतदाता के मन में होता है।
चुनाव का शंखनाद हुए 10 दिन हो चुके हैं पर अभी तक राजनैतिक दलों ने अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किये है कारण क्या हैं "इन्तजार और देखो" क्यों ये स्थिति बनती है इसके कयास आम लोग लगाते हैं यह कयास कितने सही और कितने गलत निकलेंगे यह नामांकन के दिन पता चलेगा की प्रत्याशी कौन हैं।
नेताओं की चयन समिति जनता होती है जिस प्रकार शरीर की छोटी इकाई कोशिका, कोशिका से ऊतक, ऊतक से तंत्र, तंत्र से अंग और अंगों से शरीर का निर्माण होता है। यदि शरीर की अरबों कोशिकाओं में से एक कोशिका भी रोगी हो जाये तो शरीर धीरे-धीरे रोगी हो जाता है, उसी प्रकार जनतंत्र भी है अगर समाज मे एक नागरिक भी देश की मुख्य धारा से छूट जाता है तो पूरे देश पर उसका प्रभाव पड़ता है। इसीलिए भारत मे प्रजातन्त्र की स्थापना हुई, जिस प्रकार भारत के माननीय प्रधान मंत्री हमारे सबसे बड़े प्रतिनिधि हैं, उसी प्रकार भारत का हर नागरिक भी देश का मुख्य है।
सही मायने में देखा जाए तो लोगों का विश्वास नेताओं से क्यों उठ रहा है इसका कारण जनभावना के अनुरूप कार्य न होना और सत्ता की हनक उनकी राजनीति में दिखना आम बात है। वर्तमान समय में राजनीति किस आयाम पर खड़ी को देखना है तो इतना समय होने के बाद भी प्रत्याशियों चयन राजनैतिक दलों के द्वारा न किया जाना जिसे डेमेज कंट्रोल का नाम दिया जाता है अंत समय में बहुत बड़ी उहापोह की स्थिति है।
अपने आप को संगठन में स्थापित करने जनता से जुड़ाव व जनता के बीच में स्वीकार्यता कितनी है को देखना नहीं रह गया है सिर्फ नाम से चुनाव लड़ना कतिपय लोगों प्रतिष्ठा को मान लिया है। संगठन कोई भी हो संगठित करके सबको साथ लेकर चलने वाला होता है। संगठन का दायित्व है सबको साथ लेकर चलना और जिस उद्देश्य के लिए उस संगठन का निर्माण हुआ है लक्ष्य को प्राप्त करने की रणनीति बनाना पर वर्तमान स्थिति पद और प्रतिष्ठा के लिए कुछ लोगों का संगठन से जुड़ाव होना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक हो रहा है।
अब सवाल आता है की मतदाता नेताओं से क्यों नाराज हैं और यह नाराजगी कैसे दूर होगी -
हमारे माननीय प्रतिनिधियों को अब वेतन, भत्ते ओर सभी सुविधाएं मिलती हैं, उसी प्रकार देश के हर नागरिक को,प्रत्यक्ष, रोजगार, समान शिक्षा, स्वास्थ्य, सुविधा, सुरक्षा, आदि मिलनी चाहिए तभी यह प्रजातन्त्र का वास्तविक रूप होगा, हमारे समाज मे किसी भी प्रकार का भेद-भाव, न हो, सभी नागरिकों को अवश्य काम करने का विधान बने, व चुनाव के समय राजनैतिक दलों द्वारा जनता के।सम्मुख रखे गए घोषणापत्र पर वास्तविक अमल न होना ओर वायदों से हटकर जनता के मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालना यह भी मुख्य कारण है।
यदि बात सरकार के विधायक मंत्रियों और सांसदों की निधि की बात करें तो निधि का आवंटन वोट लुभाने तक सीमित है। निधियों का उपयोग अंत समय मे करना ओर निधि का उपयोग किस तरह से वर्गों को संतुष्ट करने में किया जाता है इससे आम आदमी के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ता है के मूल्यांकन की आवश्यकता सभी राजनैतिक दलों और संगठनों से है।