LUCC पर आखिर पक्ष और विपक्ष के प्रतिनिधि कब आएंगे खुलकर पीड़ितों के समर्थन में।
क्या LUCC सोसाइटी के डॉयरेक्टर समय रहते सोसायटी में जमा धनराशि को मनीलांड्रिंग करके विदेश तो नही भेज गए।
उत्तराखण्ड में आजकल LUCC सोसायटी द्वारा निवेशकों की धनराशि को वापस की बात तो दूर पर अपना सिस्टम ही समेट कर चलती बन गयी है। प्रारम्भ में लगभग अक्टूबर 2024 में पौड़ी गढ़वाल की ब्रांचों में सुगबुहाहट शुरू हुई थी जिसके बाद पुलिस के द्वारा कुछ गिरप्तारियाँ भी हुई थी इस पर सोसायटी से जुड़े हितधारकों के बीच एक मैसेज़ पहुंचाया गया कि घटनाक्षेत्र की ब्रांचों में कैशियर ओर ब्रांच मैनेजर के द्वारा निवेशकों द्वारा जमा धनराशि को जमा नही किया गया जिसको कि सोसायटी अपने स्तर से जांचकर निवेशकों की रकम को लौटाएगी। कुछ सोसायटी से जुड़े लोगों द्वारा पौड़ी की घटना को वही की ब्रांच में हुआ घपला बताया गया और सिस्टम पर विश्वास रखने को कहा गया।
माह जनवरी 2025 में पौड़ी पुलिस ने द लोनी अर्बन मल्टीस्टेट क्रेडिट एंड थ्रिफ्ट को-ऑपरेटिव सोसायटी (एलयूसीसी) के प्रबंधक समेत पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। ये मुकदाम निवेशकों से धोखाधड़ी के मामले में किया गया था। उत्तराखंड में LUCC के सुविधा केंद्र संचालकों द्वारा माह अक्टूबर 2024 तक निवेशकों से धनराशि जमा की गई इस बीच न किसी की मैच्युरिटी जो मार्च 2024 से देनी थी को सिस्टम को अपडेट का बहाना करके जारी नही किया गया। माह अक्टूबर 2024 के बाद निवेशकों की धनराशि को जमा नही किया गया और कई तरह से गुमराह किया गया।
गढ़वाल में यह सब खेल तब सामने आया जब पौड़ी पुलिस को इस मामले की शिकायत एक पीड़ित तृप्ति नेगी ने प्राथमिकी दर्ज कराई कि उसे शाखा के मैनेजर विनीत सिंह और कैशियर प्रज्ञा रावत ने पैसे लेकर कोई दस्तावेज नहीं दिया गया। इसके बाद कोतवाली कोटद्वार में मुकदमा दर्ज किया गया और जांच शुरू की गई। जांच के दौरान पता चला कि गिरीश चंद्र सिंह बिष्ट नाम के एक व्यक्ति द्वारा 2016 में LUCC की शाखा स्थापित की थी और धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में इसकी 35 शाखाएं खोली गईं । आरोपियों ने सेमिनार आयोजित कर लोगों को आकर्षित किया और फर्जी योजनाओं के माध्यम से उन्हें निवेश करने के लिए मजबूर किया। गिरफ्तार अभियुक्तों में उर्मिला बिष्ट, जगमोहन बिष्ट, प्रज्ञा रावत, विनीत सिंह और गिरीश चंद्र बिष्ट शामिल है। जिसमे उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा दी गयी जमानत के पश्चात गिरीश चन्द्र बिष्ट जेल से बाहर आ गए हैं।
अभी तक 189 करोड़ से अधिक के गबन का मामला सामने आया है।
पुलिस के अनुसार, LUCC के खिलाफ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी कई मामले दर्ज हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह एक संगठित धोखाधड़ी है। अब तक की जांच में 189 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि का गबन सामने आया है।
अब कुछ अनसुलझे सवाल खड़े होते हैं जिनका जबाब ओर जबाबदेही आवश्यक है-
1- LUCC को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय और अब सहकारिता मंत्रालय में पंजीकृत दिखाया गया है क्या कोई भी आकर ऐसे पंजीकरण करके गबन करके चलता बन सकता है। ऐसी सोसायटी की जबाबदेही क्यो नही तय की गई हैं।
2- जब LUCC पर गबन के आरोप लगने शुरू हो गए थे तो इनके डायरेक्टरों पर कोई कार्यवाही क्यो नही की गई। क्या ऐसे लोग मनीलांड्रिंग के जरिये निवेशकों की धनराशि को विदेश भेजने में कामयाब हुए या नही।
3- सरकारी बैंकों में अमूमन लोग धनराशि को जमा नही कर रहे ओर सरकारी बैंक और पोस्टऑफिस में जमा धनराशि को निकालकर ऐसे सोसायटी में जमा कर रहे क्या इसके लिए वित्तीय साक्षरता के नाम पर चलाये जा रहे प्रशिक्षण शिविर क्या खाना पूर्ति के लिए किए जा रहे हैं।
4- सरकार के मंत्रालय में रजिस्टर्ड इस सोसायटी के निवेशकों का पैसा वसूल करने के लिए सरकारी प्रयास कितने हुए क्या इन डायरेक्टरों की सम्पत्तियां चिन्हित हुई हैं।
5- LUCC के जो डायरेक्टर विदेश में हैं उनको भारत मे प्रत्यार्पण हेतु कार्यवाही ओर जो भारत मे हैं उनको अभी तक गिरप्तार किया गया या नही यह स्पष्ट क्यो नही किया गया।
6- LUCC के मुख्य खाते को सीज किया गया या नही उस खाते में वर्तमान तक जमा धनराशि का विवरण आदि के अंतर की टेली हुई या नही।
7- क्यो विपक्ष ओर सत्तापक्ष इस LUCC के मुद्दे पर चुप्पी साधे हैं क्यो प्रदर्शन कर रहे निवेशकों के साथ खड़े होकर न्याय के लिए पीड़ितों का साथ नही देते।
8- LUCC के द्वारा मैच्युरिटी की धनराशि को एजेंटो के माध्यम नकद निवेशकों को दिया गया जबकि निवेशकों के बैंक खातों या निवेशकों द्वारा सुविधाकेन्द्रों में जाकर धनराशि निकासी की जा सकती थी पर ऐसे नही हुआ।
9- LUCC की ब्रांच अनेकानेक स्थानों पर खुलती गयी इस पर इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा संज्ञान क्यो नही लिया गया।
ऐसे अनुउत्तरीत सवालों के जबाब स्पष्ट होने चाहिए। इस डिजिटल युग मे ऐसे फ्रॉड को अधिक समय बाद ट्रैक करना मुश्किल होगा। सरकार से सवाल इसलिए हुए की सरकार द्वारा संचालित सहकारिता मंत्रालय में यह सोसायटी पंजीकृत है।