रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
ग्राम पंचायत बुढना के छप्परगागाड़ गदेरे मे वन विभाग द्वारा निर्मित पुल चढ़ गया था आपदा की भेंट, किन्तु प्रशासन ने नही ली कोई सुध।
आपदा के आठ माह बीत जाने के बावजूद भी आपदा की भेंट चढ़ी परिसम्पत्तियों की प्रशासन नही ले रहा है संज्ञान।
जखोली- विकासखंड जखोली के अन्तर्गत ग्राम पंचायत बुढ़ना के छप्परगागाड़ नामी तोक मे 24 अगस्त 2022 को आये भारी आपदा के चलते उपरोक्त तोक के गदेरे मे निर्मित पैदल पुल आपदा की भेंट चढ़ चुका था, इस पुल का निर्माण वर्ष 2007-2008 मे जनता की सुविधा के लिए रूद्रप्रयाग वन प्रभाग द्वारा बनाया गया। यह मार्ग विशेष कर बुढ़ना, त्यूँखर,बलुठियाग को जोडने वाला पैदल मार्ग भी है। इसी रास्ते से लोग पैदल चलकर कर आते जाते है।यहां तक की बुढना गांव की महिलाएं इसी रास्ते अपने मवेशियों के लिए चारा पत्ती के लिए जंगल को जाती हैं, लेकिन आपदा में पुल बह जाने से गदेरे मे भारी खाई बन जाने से इस रास्ते से गुजरने वाले लोगों का सम्पर्क मार्ग टूट जाने से इस तरफ आना जाना लगभग बंद हो गया है।
जबकि यह पुल सरकारी सम्पत्ति थी और प्रशासन को सबसे पहले पुल का आंकलन कर यथाशीघ्र पुल का निर्माण करना अति आवश्यक था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जिला प्रशासन का कोई भी अधिकारी, कर्मचारी छप्परगागाड़ तोक निरीक्षण करने आया ही नही, निरीक्षण तो दूर की बात पर अभी तक इस स्थान का नाम सुना तक नही होगा।
बुढ़ना की प्रधान श्रीमती आरती देवी बताती है कि इस सम्बन्ध मे पहले ही पुल के बह जाने से सम्बंधित जानकारी तहसील प्रशासन को दे चुके थे लेकिन आजतक कोई भी वहाँ झाँकने तक नही गया, यही नही इसी तोक मे बुढ़ना के लगभग 10 परिवारों की सिचिंत भूमि भी स्थित थी जो कि भारी आपदा की भेंट चढ़ गयीं सारे खेत दल दल में तब्दील हो गये लेकिन प्रशासन द्वारा पीड़ित परिवारों को केवल संतावना राशि 1000/1200 सौ रू के चेक देकर संतुष्ट कर दिया लेकिन जमीन को समतलीकरण करने कोई जरुरत नही समझी।
एक तरफ पहाड़ पलायन से जूझ रहा और जो घर मे हैं भी उनकी इस तरह से अनदेखी करना कहीं न कहीं संसाधनो की तलाश में भटकते पहाड़ की उम्मीदों को धराशायी करने में कामयाब न हो।