रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
भगवान शंकर और भगवान कृष्ण हैं योगेश्वर आचार्य - ममगांई।
देहरादून- जीव अज्ञानवस पदार्थ और क्रिया को अपना मान कर स्वयं करता बन जाता है जीव के इस करता भाव को तिरोहित करना ही सांख्य दर्शन है, जड़ सत्ता प्रकृति है और चेतन सत्ता पुरुष है।
यह बात शिवमंदिर गढवाल सभा नेशविलारोड पर शिवपुराण की कथा में शिव और कृष्ण के चरित्र को जीवन से जोड़ कर प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगाँई जी ने कहा प्रकृति पुरुष को मोहित करने के लिए स्पंदनसील होती रहती है, परंतु अंत में उसमें समाहित हो जाने पर वहां पर आप प्रकृति में अवस्थित हो जाती है इस बाह्य प्रकृति को अव्यक्त कहते हैं।
सत्व रजस तामस एवं समस्त गुणों के रूप में व्यक्त होने पर व्यक्ति प्रकृति त्रिगुणात्मिका व्यक्त बन जाती है, आत्मा की अनंत एवं अपार शक्तियों की निर्वाध धारा प्रभावित होने का मार्ग ही योग मार्ग है। हमारे भगवान शंकर और भगवान कृष्ण योगी हैं, इनके गुणों को श्रवण करने पर चित्त की विकारात्मक अवस्था समाप्त होने पर विकासात्मक अवस्था बन जाती है।
भगवान कृष्ण जी ने युधिष्ठिर अर्जुन को और भगवान शंकर ने रावण को विकासात्मक पाठ पढ़ाया था युधिष्ठिर अर्जुन ने विकास किया जबकि रावण ने विनाश किया अंतर रावण की चित्र स्थिति मलिन युधिष्ठिर अर्जुन की स्थिति स्थिति निर्मल थी, यह हमारे जीवन में भाव का पर्यावरण है विकासात्मक सोच दूषित पर्यावरण को दूर करते हैं दूषित भावनाएं अंतर वाह्य वातावरण को दूषित करते हैं।
आज विशेष रूप से अध्यक्ष श्रीमती लक्ष्मी बहुगुणा, महासचिव सुजाता पाटनी, देवेश्वरी बम्पाल, सरस्वती रतुड़ी, नन्दा तिवारी, अखिल गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना, महासचिव गजेंद्र भण्डारी, कोषाध्यक्ष सन्तोष गैरोला, रमेश जखवाल, मीना सेमवाल, आयुष ममगांई, राजेश्वर सेमवाल, चन्द्र बल्लभ बछेती, आशीष सेमवाल, सरिता लखेड़ा, राजमती सजवाण, रेखा बडोनी, सुषमा थपलियाल, रोशनी सकलानी, मंजू बडोनी, आशा रावत, अनुराधा कोटनाला आदि सम्मलित थे ।