दो दशक बाद भी सपने ही देखता रह गया उत्तराखंड
उत्तराखंड राज्य निर्माण के दो दशक बाद भी सपने ही देख रहा, उन सपनों का क्या अर्थ रह गया जिनके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर गए वो महान क्रांतिकारी शहीद जिनका लक्ष्य उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद पर्वतीय क्षेत्र जिसे उत्तराखंड के नाम से जाना जाए में खुशहाली की बयार चहुँ दिशाओं में फैलेगी। जिन सपनों को लेकर पहाड़ी राज्य की स्थापना की गई थी वे सपने आज भी सपने बन कर रह गए हैं। उत्तराखंड राज्य की स्थापना पहाड़ी जनपदों के आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन को देखते हुए की गई थी। जिसमें राज्य निर्माण के बाद कितनी अपेक्षाएं पूर्ण हुई हैं इस बात से आमजन वाकिफ है।
राज्य गठन को देखे तो छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन क्रमश: एक नवंबर, नौ नवंबर और 15 नवंबर 2000 को हुआ था। छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश, उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश और झारखंड को बिहार से अलग कर राज्य बनाया गया था। छोटे राज्यों के गठन का मुख्य उद्देश्य सर्वांगीण विकास की राह देखते आम नागरिकों को संसाधन सुलभता से मिल सके जिससे की अपनी आय अर्जन के साथ-साथ अपने जीवन स्तर को सुदृढ़ और मजबूत करने के लिए प्रयत्न कर सकें।
तीनों राज्यों की स्थिति की तुलना करने पर ये पता चलता है कि कम से कम दो राज्यों में तो सबसे ज्यादा विकास राजनीतिक क्षेत्र में हुआ है। उत्तराखण्ड और झारखण्ड में राजनितिक कारणों से सदैव उथल पुथल रही है।
राजनितिक उथल पुथल के मामले में छत्तीसगढ़ का माहौल अभी तक स्थिर रहा है। राजनीती के कारण उत्तराखण्ड और झारखण्ड में हमेशा सरकारें व मुख्यमंत्री बदलते रहे, जिस कारण दोनों राज्यों में उपलब्ध संसाधनों का विकास करना किसी भी राजनैतिक दल चाहे वह सत्ता पक्ष का रहा हो या विपक्ष का एजेंडा नहीं रहा है।
उत्तराखंड को अपने 20 साल के सफर में 11 मुख्यमंत्री मिले हैं। भाजपा ने सात मुख्यमंत्री दिए हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने तीन मुख्यमंत्री प्रदेश को दिए हैं। हालांकि, भाजपा शासन के पांच साल के कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड में तीन-तीन मुख्यमंत्री मिले हैं। चौंकाने वाली बात है कि सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे।
झारखण्ड के 20 वर्ष के सफर को 11 मुख्यमंत्री जिनमें 5 मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी व 5 मुख्यमंन्त्री झारखण्ड मुक्ति मोर्चा व 01 मुख्यमंत्री निर्दलीय तथा 03 बार राष्ट्रपति शासन के रूप में राज्य को मिलें हैं।
छत्तीसगढ के 20 वर्ष के सफर को 03 मुख्यमंत्री जिनमें 01 मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी व 2 मुख्यमंन्त्री भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से राज्य को मिलें हैं।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य उत्तराखण्ड के साथ ही जुड़ा हुआ है जहां विधानसभा के दो-दो भवन हैं लेकिन, स्थाई राजधानी कहीं भी नहीं, देहरादून 20 के सालों बाद भी अस्थाई राजधानी है। उत्तराखंड राज्य की मांग के समय से ही आंदोलनकारी जो कि सभी की जनभावनाएं थी में उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैण के पक्ष में थी, न जाने सत्ताधारी राजनितिक दलों की क्या मजबूरियां हैं जो गैरसैण को स्थायी राजधानी नहीं बना पाए। ग्रीष्मकालीन राजधानी का झुनझुना राज्यवासियों को थमा गए।
उत्तराखण्ड में ग्रामीण क्षेत्रों से हो रहा पलायन एक गंभीर समस्या है। 2001 तथा 2011 की जनगणना के आकड़ों की तुलना में राज्य के पर्वतीय ज़िलों मे जनसंख्या वृधि बहुत धीमी गति से देखी जा रही है। 2001 और 2011 के बीच अल्मोड़ा तथा पौड़ी गढ़वाल जनपदों की आबादी मे गिरावट राज्य के कई पहाड़ी क्षेत्रों से लोगों के बड़े पैमाने पर पलायन की और इशारा करती है। पलायन की गति ऐसी है की कई ग्रामों की आबादी दो अंको में रह गयी है। आकड़े दर्शाते हैं की देहरादून,उधमसिंह नगर, नैनीताल और हरिद्वार जैसे जनपदों मे जनसंख्या वृधि दर बढ़ी है, जबकि पौडी तथा आलमोडा जनपदों मे यह दर नकारात्मक है टिहरी , बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग तथा पिथौरागढ़ जनपदों में असामान्य रूप से जनसंख्या वृधि दर काफ़ी कम है।
उत्तराखण्ड राज्य का शरीर पलायन के घाव से लहूलुहान है। 31 प्रतिशत लोग शिक्षा के लिए पहाड़ छोड़ रहे हैं। 29 प्रतिशत विवाह की वजह से पलायन कर रहे हैं तथा 13 प्रतिशत लोग बेहतर नौकरियों की तलाश में।
पर्यटन मुख्य आय का स्रोत होने के बाद भी आजतक पर्यटन के नक्शे पर बहुत से स्थानों को जगह नहीं मिल पायी है और पर्यटकों की सुविधाओं के लिए गंभीर न होने के कारण पलायन का असर देखने को मिल रहा है।
उत्तराखंड में विश्व प्रसिद्ध चारधाम को देवस्थानम बोर्ड के अधीन करके स्थानीयों के मन में हक़ हकूक से भी बेदखल होने की चिंता सताये जा रही है। सरकार समाज के लिए है या समाज सरकार के लिए गंभीर सवाल हैं।
झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों में खनिज सम्पदाएँ प्रचुर मात्रा में हैं व लघु तथा मध्यम उद्योग का विकास बहुत अच्छा हुआ है जिससे कि उत्तराखंड के साथ गठित ये दो राज्य विकास के मार्ग पर चिन्तर प्रगति कर रहे हैं।